Book Title: Jin Pujan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 174
________________ बीता अनंता काल फिर भी, कर्म धारा बह रही। औ ज्ञान धारा को प्रभुवर, जानता ही मैं नहीं। श्री पार्श्वनाथ जिनेश मेरे, ज्ञान धारा बहाइये। आवागमन से हूँ व्यथित, उद्धार मेरा कीजिये।।5।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीपक जले सूरज उगे पर, माह तम मिटता नहीं। बाहर उजाला तेज भीतर में उजाला है नहीं।। श्री पार्श्वनाथ जिनेश मुझमें, ज्ञान दीप जलाइये। आवागमन से हूँ व्यथित, उद्धार मेरा कीजिये।।6।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। भव राग से रागी हुआ मैं, द्वेष से द्वेषी हुआ। पर आप सा सान्निध्य पाकर, क्यों नहीं ज्ञानी हुआ।। श्री पार्श्वनाथ जिनेश मेरे, अष्ट कर्म निवारिये। आवागमन से हूँ व्यथित, उद्धार मेरा कीजिये।।7।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। प्रभु बीज कर्मों का जला दो, उग नहीं सकता कभी। मेरा मिलन मुझसे करा दो, फिर न आना हो कभी। श्री पार्श्वनाथ जिनेश मेरे, मिष्ट शिवफल दीजिये। आवागमन से हूँ व्यथित, उद्धार मेरा कीजिये।।8। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। 174

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