Book Title: Jin Pujan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 180
________________ चंदन से अति शीतल, प्रभु की पद रज धूलि। नहीं चरणन स्पर्श किये, यह भारी भूल हुई।। प्रभु शांति जल देना, भवताप मिटे स्वामी। प्रभु वीर दरशदेना, शरणा दो अभिरामी।।2।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। क्षणभुगर वैभव है, भव का वर्द्धन करता। मैं राग किया करता, प्रतिपल उलझा रहता।। प्रभु अक्ष अगोचर हो, अक्षय पद दो स्वामी। प्रभु वीर दरश देना, शरणा दो अभिरामी।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। जग मान सरोवर में, शत दल सुरभित होता। रस में फँसकर मधुकर, नित प्राण गँवा देता।। प्रभु पद पंकज अलि बन, गुण गान करूँ स्वामी। प्रभु वीर दरशदेना, शरणा दो अभिरामी।।4।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। इस कर्म असाता ने, चिरकाल सताया है। जितना उपचार किया, तृष्णा को बढ़ाया है।। निज दोष समझ आया, यह व्याधि हरो स्वामी। प्रभु वीर दरश देना, शरणा दो अभिरामी।।5।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 180

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