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श्री शीतलाथ जिन पूजन
स्थापना
ज्ञानोदय छंद मैं निज घर को भूला भगवन्, पर घर में फिरता रहता।
बिना भाव से मात्र द्रव्य से, तुम्हें रिझाने में आता। निज गृह की पहचान नहीं प्रभो !तुमको कहाँ बिठाऊँगा।
मैं अज्ञानी भगवन् कैसे, अनंत गुण गाऊँगा।। है विश्वास अटल यह मेरा, श्रद्धालय में आओगे।
अपने एक अनन्य भक्त , जिन गृह में पहुँओगे।।1।। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलानथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
द्रव्यार्पण तर्ज-नंदीश्वर श्री जिन धाम ........छंद जल से निर्मल जिनराज, रूप तुम्हारा है। जन्मादि रोग क्षय कार, नाथ सहारा है।।
शीतल जिनराज महान, दर्शन सुखकारी।
है अनंत गुण की खान, भविजन हितकारी ॥1॥ ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय जन्म जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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