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सावन के महिने में शीतल, पूर्ण चंद्र का उदय हुआ। सम्मेदाचल संकुल कूट से, जिन श्रेयांस को मोक्ष हुआ।। एक सहस मुनि साथ पधारे, शिवलक्ष्मी भी धन्य हुई।
मोक्ष कल्याणक महिमा मेरे, पुण्योदय से गम्य हुई।।।5। ॐ हीं श्रावणशुक्लपूर्णिमायां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य ऊँ हीं अहँ श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय नमो नमः।
जयमाला
दोहा
श्री श्रेयांश जिनेश को, नमन करूँ शत बार। मात्र आप आधार हैं, देख लिया संसार।।1।।
जय श्रेयनाथ आप श्रेयपंथ दिखाते। संसारी जीव आप पाद पद्म में आते।।
हे विश्व वंद्य श्रेयनाथ अर्चना करें। हो आपको नमोस्तु नाथ वंदना करें।।2।। जो भव्य जीव आप तीर्थ स्नान करें हैं। वे अष्ट कर्म मल समूह नष्ट करें हैं।।3।।
हैं ग्यारवें तीर्थंकरा श्रेयांस जिनवर। प्रभु आप में रहे नहीं अब दोष अठारा।।4।।
हे नाथ जग प्रकाश एक रूप आप ही। उपयोग नंत ज्ञान दर्श दोय रूप भी।।5।। जिन दर्श ज्ञान वृत्त से त्रिरूप हो तुम्हीं। आर्हन्त्य के अनंत चतुष्टय स्वरूप भी।।6।।
पंच परम इष्ट ब्रह्म पंच रूप हो। जीवादि द्रव्य जानते तुम षट् स्वरूप हो।।7 ॥
सातो नयों की देशना दी सात रूप हो।
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