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पंचकल्याणक भक्ति बेकार है, आनंद अपार है...
खुशियाँ अपरंपार हैं, आनंद अपार है। देखो आज शौरीपुर में हो रही जय-जयकार है।। कार्तिक शुक्ला षष्ठी के दिन, शिवादेवी उर आये जी। अपराजित विमान से आये, सुर नर मंगल गाये जी।।
जग का तारण हार है, गर्भ कल्याणक सार है।
देखो आज शौरीपुर में हो रही जय-जयकार है।।1।। ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्लषष्ठ्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रावण शुक्ला षष्ठी के दिन, शौरी में जनमे जी। समुद्र विजय नृप के आँगन में, देव नृत्य कर हरषे जी।।
जन्म कल्याणक सार है, अभिषेक की धार है।
देखो आज पांडु शिला पे हो रही जय-जयकार है।।2।। ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लषष्ठयां जन्ममंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अत्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पशु बंधन को देख प्रभु जी, करुणा उर में आई जी। राजमति तज वन में जाकर, जिन दीक्षा को पाई जी।।
तप कल्याणक सार है, दीक्षा से भवपार है। देखो सहस्र आम्र वन में, हो रही जय-जयकार है।।
यह तिथि महा सुखकार है, मेरा भी उद्धार है।
देखो सहस्र आम्र वन में हो रही जय-जयकार है।।3।। ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्लषष्ठयां तपोमंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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