Book Title: Jin Pujan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 167
________________ प्रभु भक्ति से भेदज्ञान का, अंतर दीप जलाऊँ। निज को निज पर को पर जानें, ज्ञान कला प्रगटाऊँ। नेमिनाथ तीर्थंकर स्वामी, चेतन गृह में आना। ज्ञानमहल में घना अँधेरा, केवल ज्याति जगाना।।6।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। मोह बली के कारण जग में, छाया घोर अँधेरा। किंतु आपने मोह बली को, निज शक्ति से घेरा।। नेमिनाथ तीर्थंकर स्वामी, चेतन गृह में आना। कर्मों की आँधी से स्वामी, मुझको आप बचाना।।7।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। प्रभु आपकी भक्ति तरु पर, शाश्वत शिवफल फलता। पंच परावर्तन मिटता है, स्वतंत्रता को पाता। नेमिनाथ तीर्थंकर स्वामी, चेतन गृह में आना। कर्म फलों का सर्व नाशकर, जीवन सफल बनाना।।8।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। कर्म शक्ति को क्षय करने प्रभु, चरण शरण में आया। ध्रुव अनर्घपद पाने का अब, अपूर्व अवसर आया।। नेमिनाथ तीर्थंकर स्वामी, चेतन गृह में आना। एक अकेला भटक रहा हूँ, शिवपथ मुझको दिखाना।।9।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 167

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