________________
पंचकल्याणक
ज्ञानोदय छंद माता विमला गर्भ पधारे, पुष्पोत्तर से कमन किया। ज्येष्ठ वदी मावस को सारे, देव लोक ने नमन किया।। सिंहपुरी में पिता विमल के, गृह में जय-जयकार किया।
मात गर्म में प्रभुवर राजे, किञ्चित् भी नहीं कष्ट दिया॥1॥ ॐ हीं ज्येष्ठकृष्णाअमावस्यायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
फाल्गुन वदी ग्यारस को जन्मे, देवासन भी कांप उठे। शचि कहे जिनवर से स्वामी, मेरा जन्म मरण छूटे।।
शीतल मंद सुगंधित वायु, बहती है हौले-हौले।
क्षीरोदधि का क्षीर नीर ले, देव सभी जय-जय बोले।2॥ ॐ हीं फाल्गुनकृष्णएकादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
रूकी बहारें ऋतु बसंत की, देख प्रभु वैराग्य धरा। फाल्गुन कृष्णा ग्यारस के दिन, श्रवण ऋक्ष में तप धारा।। विमलप्रभा पालकी मनोकर, वन पहुँची सुर नर के साथ।
किये तीन उपवास साथ में, एक हजार हुए मुनिनाथ।।3।। ऊँ ही फाल्गुनकृष्णएकादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्रायअर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
माघ वदी मावस अपराह्ने, पूर्णज्ञान का सूर्य उगा। पंच सहस धनु उन्नत नभ में, समवसरण की लगी सभा।। दिव्यध्वनि से श्री जिनवर ने, जीवों का उद्धार किया।
जय श्रेयांसनाथ तीर्थंकर, देवों ने गुणगान किया।।4।। ऊँ हीं माघकृष्णाअमावस्यायां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
94