Book Title: Jin Pujan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 157
________________ जबक प्रभु रहे छद्मस्था, तब मोन रहे भगवंता। वैशाख वदी तिथि नवमी, हो गये पूर्ण प्रभु भानी।। चरणों में कमल रचे हैं, जब प्रभु विहार करें हैं। गुणथान सयोगी पाया, ज्ञानोत्सव देव मनाया।।4।। ऊँ ह्रीं वैशाखकृरूणनवम्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। फाल्गुन कृष्णा बारस को, प्रभु पाये सिद्धालय को। ज्यों हैं कपूर उड़ जाता, त्यों प्रभु तन भी उड़ जाात।। प्रभु सम्मेदाचल आये, निज आतम ध्यान लगाये। हम भी शुभ अध्य चढ़ायें, और मुक्तिरमा को पायें।।5।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णद्वादश्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अत्र्यं निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला दोहा सूरज से नीरज खिले, और स्वाति से सीप। भव्य कमल तुम से खिले, आओ हृदय समीप।।1। ज्ञानोदयछंद दोहा जय-जय मुनिसुव्रत तीर्थंकर, भक्ति सुमन चढ़ाता हूँ। है विशाल तव यशगाथा मैं, पूर्ण नहीं कह सकता हूँ।। शरणआपकी जो आता है, कर्मों का ग्रह मिट जहाता। जन्म मरण के दुःखों से वह, पल में छुटकारा पाता।।2।। प्रभु स्वयं में आप विराजे, जान रहे हो सभी जहान। भव्य जनों के कष्ट मिटाते, सदा प्रभु जी आप महान।। गर्भ जन्म तप ज्ञान हुए हैं, राजगृही में शुभ कल्याण। 157

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