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अशोक तरु के नीचे प्रभु ने, केवलज्ञान उपाया। चार घाति कर्मों का क्षयकर, समवसरण ही भाया ।। देव मनाये ज्ञान कल्याण, प्रभु की ध्वनि खिरी है महान। करलो जिनवर का गुणगान, आई ज्ञान की घड़ी॥4॥ ऊँ ह्रीं पौषकृष्णद्वितीयायां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अत्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
फाल्गुन शुक्ला पंचम को अपराह्न समय जब आया। सम्मेदाचल संबल कूट से, महा मोक्ष पद पाया।। देव मनाये मोक्ष कल्याण, पहुँचे जिनवर मुक्तिधाम। कर लो जिनवर का गुणगान, आई मोक्ष की घड़ी || 5॥
ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्ण अमावस्यायां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य
'ॐ ह्रीं आईं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय नमो नमः । '
जयमाला
दोहा
मल्लिनाथ जिनराज की, जग में कीर्ति विशाल। बाल ब्रह्मचारी प्रभो, नमन करूँ त्र्य काल ।।1।।
चौपाई
वंदन जिन श्री मल्लिनाथ, हम गाये तव गुण की गाथा । भेष दिगम्बर आतम रुचि जागी, बिन उपदेश नाथ वैरागी । विद्युत अस्थिर होते देखा, छोड़ दिया जग वैभव लेख ॥। 3 ॥
जय श्री मल्लिनाथ हमारे, लाखों भविजन तुमने तारे। जय-जय मुक्तिरमा पति देवा, सौ-सौ इंद्र करे तुम सेवा॥4॥
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