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भवाताप से व्यथित हुआ हूँ, अगणित दुख पाये स्वामी।
तप्त हृदय शीतल कर दो, संताप हरो अंतर्यामी।।
श्री पद्माकर पद्म जिनेशा, तव दर्शन कर हर्षाया।
आत्म शांति पाने को भगवन्, शरण तिहारी हँ आया।।2।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
नश्वरता में ही सुख माना, अक्षय पद ना जाना है। दर्श आपका पाया जबसे, जिन पद पाना ठाना है।।
श्री पद्माकर पद्म जिनेशा, तव दर्शन कर हर्षाया।
आत्म शांति पाने को भगवन्, शरण तिहारी हूँ आया।।2।। ऊँ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
इंन्द्रिय सुख के महाजाल में, भगवन् फँसकर तड़फ रहा। मुझे बचा लो काम विषय से, तुम्हें छोड़कर जाऊँ कहाँ ।।
श्री पद्माकर पद्म जिनेशा, तव दर्शन कर हर्षाया।
आत्म शांति पाने को भगवन्, शरण तिहारी हूँ आया।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
तरह-तरह के व्यंजन खाकर, क्षुधान मन की मिट पाई मन की इच्छाओं पर स्वामी, अब तक विजय नहीं पाई।।
श्री पद्माकर पद्म जिनेशा, तव दर्शन कर हर्षाया।
आत्म शांति पाने को भगवन्, शरण तिहारी हूँ आया।।5।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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