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श्री सुमतिनाथ जिन पूजन
स्थापना
सखी छंद
हेनाथ सुमति के दाता, तव चरणन शीश नवाता । अब भाग्य उदय है आया, तव पूजन करने आया ॥1॥ प्रभु तीन लोक के स्वामी, मैं भटक रहा भवगामी। इस भवसागर से तारो, दुखिया हूँ नाथ उबारो॥2॥ यह भक्त पुकारे आओ, प्रभु अब ना देर लगाओ। मेरे मन मंदिर रहना, मुझको अब भगवन बनना।।3।
ऊँ ह्रीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
द्रव्यार्पण तर्ज-पांचों मेरु..
गंगा जल सम नीर चढ़ाय, जन्म रोग का नाश कराय हे जिनराज करो भव पार।।
सुमति दातार, जिन पूजा हैजग में सार, किया न अब तक आत्म विचार
सुमति दातार, हे जिनराज करो भव पार ॥1॥
ऊँ ह्रीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय जन्म जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
भव आताप सहा नहीं जाय, नाशन हेतु चंदन लाय।
सुमति दातार, जिनराज करो भव पार ।। जिन निर्वपामीति स्वाहा॥2॥ ऊँ ह्रीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। ।
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