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सामायिक
सामायिक यानि क्या? 48 मिनिट तक मन, वचन, काया को समभाव में रखना। इससे समता की
प्राप्ति होती है, एवं अनंत कर्मों का नाश होता है।
सामायिक के कितने प्रकार है ? सामायिक के 4 प्रकार है:
1. श्रुत सामायिक
2. समकित सामायिक
3. देशविरति सामायिक
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इरियावहियं करके जब तक व्याख्यानादि में जिनवाणी का श्रवण करते है । वह श्रुत सामायिक है।
सुदेव - सुगुरु-सुधर्म पर श्रद्धा रखनी यह समकित सामायिक है। सम्यक्तव सामायिक लेकर जीव परलोक से आ सकता है।
व्रतधारी श्रावक बनना देशविरति सामायिक है। वर्तमान में श्रावक ज़ो 'करेमि भंते' का उच्चार पूर्वक 48 मिनिट की सामायिक करते है । वह भी देशविरति सामायिक है। इस चेप्टर में मुख्यतया इसी सामायिक की विचारणा की गई है।
4. सर्वविरति सामायिक - चारित्र ग्रहण करना यह सर्वविरति सामायिक है।
सामायिक कौन कर सकता है ? प्रभु ने बताया है कि 8वर्ष के पहले जीव को सामायिक के परिणाम प्राप्त नहीं होते। इसलिए 8 वर्ष के बालक से लेकर जीवन के अंत समय तक सभी व्यक्ति सामायिक कर सकते है। आठ वर्ष के पहले भी संस्कार हेतु बालक को सामायिक करवा सकते है।
सामायिक कहाँ बैठकर करनी चाहिए? हो सके वहाँ तक सामायिक पौषधशाला में करनी चाहिए और यदि घर पर करो तो एकांत स्थान में बैठकर करनी चाहिए। हर घर में आराधना करने के लिए अलग रूम होनी ही चाहिए।
सामायिक कब करनी ? 24 घंटे में जब भी आपका चित्त शांत, प्रशांत, विक्षेप रहित हो तब सामायिक कर सकते है।
सामायिक एक साथ में कितनी करनी? इसकी कोई सीमा नहीं है। पूरे दिन में जितनी ज्यादा सामायिक करें उतना अधिक लाभ होता है। एक साथ बिना पारे 3 सामायिक कर सकते है फिर चौथी सामायिक लेना हो तो सामायिक पार कर पुनः लेनी चाहिए। एक साथ 3-6 या 10 सामायिक “अहन्नं भंते देशावगासिक के पच्चक्खाण से उच्चर सकते है।
सामायिक कैसे करनी ? सर्व उपकरणों को साथ लेकर, मन-वचन-काया के 32 दोषों को टालकर
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