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तीर्थ : भरतक्षेत्र में गंगा-सिंधु दो नदियाँ हैं। इन नदियों के लवण समुद्र के साथ संगम स्थान को तीर्थ कहते हैं। गंगा का संगम स्थान मागध तीर्थ एवं सिंधु का संगम स्थान प्रभास तीर्थ है। दोनों के बीच में वरदाम नामक तीर्थ है। भरतक्षेत्र की तरह ऐरावत एवं बत्तीस विजयों में भी तीन-तीन तीर्थ होने से जबूंद्वीप में कुल 34x33102 तीर्थ हैं। छप्पन अन्तद्वीपका स्वरुप:___लघु हिमवंत एवं शिखरी पर्वत के पूर्व एवं पश्चिम किनारे से , 2-2 दाढ़ाएँ लवण समुद्र की तरफ निकलती है। इस प्रकार कुल 8 F दाढ़ाएँ हैं। 1-1 दाढ़ा में 7-7 द्वीप होने से 8 x 7 = 56 अंतर्वीप A कहलाते है। इन द्वीपों में असंख्यात वर्ष के आयुष्य वाले युगलिक । रहते हैं। समुद्र के अंदर होने से ये द्वीप अंतर्वीप कहलाते हैं। विद्याधर राजाओं के स्थान तथा आभियोगिक देवों के स्थान:
. भरत-ऐरावत एवं 32 विजयों के मिलाकर कुल 34 दीर्घ वैताढ्य है। ये 50 योजन चौड़े एवं 25 योजन ऊँचे चाँदी के बने हुए है। नीचे से 10 योजन ऊपर जाने पर दोनों तरफ 10-10 योजन सपाट भूमि है। उसमें उत्तर श्रेणी एवं दक्षिण श्रेणी के नगरों में विद्याधर राजा राज्य करते हैं। आगे और 10 योजन जाने पर वहाँ भी 10-10 योजन की 1० योजन सपाट भूमि है। यह दूसरी मेखला है। यहाँ आभियोगिक देव रहते हैं। इनकी भी उत्तर-दक्षिण दिशा में दो श्रेणियाँ हैं। इस प्रकार प्रत्येक वैताढ्य पर 2 विद्याधर की एवं 2 अभियोगिक देवों की कुल 4 श्रेणियाँ है। अत: पूरे जंबूद्वीप में महाविदेह की 32 एवं भरत तथा ऐरावत क्षेत्र की मिलाकर कुल 34x4=136 श्रेणियाँ है।
चुने हुए मोती जो स्वयं के पुण्य से भी अधिक अपेक्षा रखें उसे असमाधि हुए बिना नहीं रहती। जो स्वयं के पुण्य से अधिक न इच्छे वह समाधि में जीते है। और जो स्वयं के पुण्य में जितना है उसकी भी अपेक्षा न रखें वे परम समाधि में मग्न होते है।
10 योजन
10 योजन
आभियोगिक देवों के स्थान 10 योजन
10 योजन
5 योजन -25-योजन
विद्याधरों के नगर 10 योजन
10 योजन
-50-योजन
050