Book Title: Jainism Course Part 02
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 185
________________ कुल 228 शा.चै.x120=27360 प्रतिमाजी (4) पूर्व महाविदेह __ मेरु पर्वत के पूर्व में 16 विजय है। प्रत्येक विजय में 2 नदी के प्रपात कुण्ड एवं वैताढ्य पर्वत के कूट पर 1-1 शा.चैत्य है। अत: 16x3- 48 शा.चैत्य 8 वक्षस्कार के 9 शिखर है। इनके प्रथम शिखरों पर - 8 शा.चैत्य 6 अन्तर्नदी में - 6 शा.चैत्य कुल - 62 शा.चैत्य ।। कुल 62 शा.चैत्य x120 = 7440 प्रतिमाजी (5) पश्चिम महाविदेह -पूर्व विदेह के समान पश्चिम विदेह में भी कुल - 62 शा.चैत्य कुल 62 शा.चैत्य -120 = 7440 प्रतिमाजी । (8)नीलवंत पर्वत- इसके केशरी द्रह पर - 1 शा.चैत्य एवं कूट पर - 1 शा.चैत्य कुल - 2 शा.चैत्य कुल 2 शा.चैत्यx120 = 240 प्रतिमाजी (१)रम्यक क्षेत्र- नरकांता नारीकांता दो नदी के प्रपात कुण्ड में - 2 शा.चैत्य वृत्त वैताढ्य पर ___ - 1 शा.चैत्य कुल - 3 शा.चैत्य कुल 3 शा.चैत्य x 120 = 360 प्रतिमाजी (10)रुक्मि पर्वत इसके महापुंडरीक द्रह पर - 1 शा.चैत्य कूट पर - 1 शा.चैत्य कुल - 2 शा.चैत्य कुल - 2 शा.चैत्यx120 = 240 प्रतिमाजी (11)हरण्यवंतक्षेत्र रुप्यकुला एवं सुवर्णकुला नदी के प्रपात कुण्ड पर - 2 शा.चैत्य वृत्त वैताढ्य पर _ - 1 शा.चैत्य कुल - 3 शा.चैत्य । कुल - 3 शा.चैत्यx120 = 360 प्रतिमाजी

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