Book Title: Jainism Course Part 02
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 188
________________ शास्त्रानुसार अंगुल के तीन प्रकार श्री ऋषभदेव प्रभु का अंगुल (खुद के अंगुल से उनका देहमान 120 अंगुल था । ) श्री महावीर स्वामी के अंगुल से आधा (वीर प्रभु का देहमान खुद के अंगुल से 84 अंगुल का था ।) 3. आत्मांगुल : किसी भी काल में किसी भी व्यक्ति के खुद के अंगुल का माप । शास्त्र में पृथ्वी आदि शाश्वत पदार्थों का जो माप दिया है, वह प्रमाणांगुल से बताया गया है और शरीर आदि की ऊँचाई उत्सेधांगुल से बताने में आयी है। उत्सेधांगुल से प्रमाणांगुल 400 गुना बड़ा है। उत्सेधांगुल से ऋषभदेव एवं वीर प्रभु की काया : ऋषभदेव प्रभु के 120 अंगुल को उत्सेधांगुल बनाने के लिए 400 से गुणा करना। 120x400 = 48000। इसे धनुष बनाने के लिए 96 से भाग देना । जिससे 500 धनुष की काया होती है। 1. प्रमाणांगुल : 2. उत्सेधांगुल : वर्तमान कालीन माप की समझ : वर्तमान कालीन अंगुल लगभग उत्सेधांगुल जितना है। इसलिए शाश्वत पदार्थों का वर्तमान कालीन माप निकालने के लिए 400 से गुणना । जिसका गुणन निम्नानुसार है। शाश्वत पदार्थों का 1 योजन वर्तमान कालीन 400 योजन शाश्वत पदार्थो का 4 गाउ शाश्वत पदार्थो का 12 कि.मी. = = = वर्तमान कालीन 1600 गाउ वर्तमान कालीन 4800 कि.मी. 158

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