Book Title: Jainism Course Part 02
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 176
________________ भरत क्षेत्र के बराबर मध्य भाग में पूर्व-पश्चिम लम्बा एवं 50 योजन चौडा वैताढ्य पर्वत है। जिससे भरतक्षेत्र उत्तरार्ध एवं दक्षिणार्ध इन दो भागों में बँट जाता है। हिमवंत पर्वत में से आने वाली गंगा-सिंधु इन दो नदियों के कारण इसके 6 खण्ड बन जाते हैं। दक्षिणार्ध के मध्य खण्ड अर्थात् प्रथम खण्ड में तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि 63 शलाका पुरुषों का जन्म होता है। भरत क्षेत्र में कुल 32,000 देश है। उसमें 25% (साढ़ा पच्चीस) देश आर्य अर्थात् धर्म करने योग्य क्षेत्र हैं। शेष सभी देश अनार्य है। अनार्य देश में बिल्कुल धर्म नहीं होता। चक्रवर्ती के चौदह रत्न एवं उसके कार्यचक्रवर्ती के 14 रत्नों में से 7 रत्न पृथ्वीकाय (एकेन्द्रिय) के है एवं 7 रत्न पंचेन्द्रिय है। (1) चक्ररत्न - अन्य गौत्र वाले वैरी का मस्तक छेदता है। (2) छत्ररत्न - चक्रवर्ती के हस्त स्पर्श से 12 योजन विस्तृत बनता है एवं जब म्लेच्छों के देव बारीश बरसाते हैं। तब सारे सैन्य का रक्षण करता है। (3) दण्डरत्न - भूमि का समीकरण करने एवं 1000 योजन तक खोदने में काम आता हैं। उदाहरण : सगर चक्री के 60 हजार पुत्र अष्टापद तीर्थ की रक्षा के लिए दंडरत्न से खाई खोदकर उसमें पानी भरने के लिए दण्ड रत्न से पानी वहाँ तक ले आते हैं। पानी भरने पर कीचड़ नाग कुमारों के आवास (वास्तविक नहीं लेकिन क्रीडा स्थल हो सकते हैं ) में गिरने लगा। उससे कोपायमान हुए नाग कुमारों ने एक साथ सगर चक्री के 60 हजार पुत्रों को मार डाला। (4) चर्मरत्न - चक्रवर्ती के हस्त स्पर्श से 12 योजन विस्तार पाता है। इस पर सुबह बोया हुआ धान्य शाम तक रसोई बनाने योग्य तैयार हो जाता है। तथा यह नदियों एवं समुद्रों का उल्लघंन करने में भी काम आता है। (5) खड्गरत्न - यह तलवार युद्ध में काम आती है। (6) काकीणीरत्न - वैताढ्य पर्वत की गुफा में एक-एक भींत पर 49-49 मांडला करने में काम आता है एवं जब तक चक्री का शासन रहता है तब तक ये मांडले सूर्यसम प्रकाशं करते हैं। (7) मणिरत्न - नीचे चर्मरत्न 12 योजन तक बिछाया हो एवं ऊपर छत्ररत्न 12 योजन तक फैलाया हो उस समय छत्र की दण्डी पर इस रत्न को बांधने पर सर्वत्र प्रकाश फैलता है एवं हाथ अथवा मस्तक पर बांधने से शरीर के सर्व रोग नाश होते हैं। (8) पुरोहितरत्न - शांतिकर्म करता है। (9) गजरत्न (10) अश्वरत्न - दोनों महापराक्रमी होते हैं।

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