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विषय में आसक्त होकर अपने जीवन का अंत कर लेते हैं। तो फिर पाँचों इन्द्रियों के विषय में आसक्त बने मनुष्य की क्या स्थिति होती होगी? इन विषयों में आसक्त बना मनुष्य मात्र अपना यह भव ही नहीं बल्कि
अपने कई भव बिगाड़ देता है। इन विषयों में पागल बनकर उसे कहाँ-कहाँ नहीं भटकना पड़ता है ? यह हम रुपसेन और सुनंदा की इस कहानी के माध्यम से देखेंगे।
___ कृषीभूषण नामक नगर में कनकध्वज नामक राजा राज्य करते थे। राजा न्यायी-प्रजापालक एवं शूरवीर थे। राजा की रानी का नाम था यशोमती। रानी यशोमती न सिर्फ रुपवती थी बल्कि गुणवान और शीलवान भी थी। उन्हें गुणचंद्र एवं कीर्तिचन्द्र ये दो पुत्र तथा सुनंदा नामक एक पुत्री थी। सभी का जीवन सुखमय व्यतीत हो रहा था। सुनंदा अभी शैशव के श्रृंगार से सज्ज थी कि एक दिन उसने अपने राजमहल के झरोखे से एक अप्रिय घटना देखी।
सुनंदा ने देखा कि सामने वाली हवेली में एक पुरुष निर्दयता से अपनी पत्नी को मार रहा था उसकी पत्नी हाथ जोड़कर विनंती कर रही थी कि “हे नाथ! मैं निर्दोष हूँ, मुझ पर दया कीजिए। आज तक मैंने कभी भी आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया। फिर भी आप मुझे क्यों मार रहे हो?" परंतु पत्नी की बातों को अनसुना कर वह उसे मारता ही जा रहा था। यह दृश्य देखकर सुनंदा के मन में पुरुष के प्रति द्वेष की भावना जागृत हो गई। उसके मन में यही विचार चलने लगे कि यह पुरुष बना इसका मतलब क्या यह बड़ा हो गया? यह स्त्री बनी इसका मतलब इसकी गुलाम बन गई ? पत्नी यानि किसी की दासी? पुरुष तेरी क्रूरता को धिक्कार है। एक अबला स्त्री पर हाथ उठाने वाले कायर पुरुष को धिक्कारती हुई वह पुनः अपने खंड में पहुँच गई। उसके विषाद भरे चेहरे को देखकर उसकी सखी ने उसके दुःख का कारण पूछा। तब सुनंदा ने पूरी घटना का वर्णन करते हुए अंत में कहा “सखी! पुरुष की निर्दयता तथा स्त्री की विवशता देख मैंने निश्चय किया है कि मैं कभी विवाह नहीं करूँगी'। सुनंदा की बात सुनकर सारी सखियाँ आश्चर्य चकित हो गई। उन्होंने कहा, “यह क्या कह रही हो सुनंदा, जरा सोचकर बोलो । अभी तो तुम नासमझ हो इसलिए तुमने यह निर्णय ले लिया। लेकिन जब यौवन वय को प्राप्त करोगी तब पता चलेगा कि पुरुष के बिना जीवन व्यतीत करना कितना मुश्किल है।" अपने सखियों के बहुत समझाने पर भी सुनंदा अपने निर्णय पर अटल रही। उसने कहा, “कुछ भी हो सखी तुम मेरे माता-पिता को मेरा निर्णय बता देना कि मेरी शादी करने की कोई इच्छा नहीं है। भविष्य में कभी विवाह करने की इच्छा होगी तो मैं कह दूंगी।"
___ परंतु सुनंदा का संकल्प ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाया। देखते ही देखते बाल्यावस्था का त्याग कर उसने यौवन की दहलीज़ पर कदम रखा। एक दिन सुनंदा ने सामने वाली हवेली में देखा कि एक पुरुष अपनी पत्नी का पुष्पों से श्रृंगार कर रहा है। पत्नी खिल-खिलाकर हँस रही है। पति उसे प्यार कर रहा है। यह सब