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होगा। वह रुपसेन मरकर वहाँ से तुम्हारे गर्भ में उत्पन्न हुआ। जिसे तुमने मार डाला। वहाँ से वह नाग, कौआँ, हंस तथा हिरण बना। जो प्रत्येक भव में तुम्हारे पीछे पागल बना तथा हर बार तुम्हारे पीछे उसने अपना जीवन गँवाया। यह तुम जिसका माँस खा रही हो यह भी रुपसेन का ही जीव है। इतना ही नहीं तुम्हारे पीछे 6-6 भव बर्बाद करने वाला रुपसेन यहाँ से मरकर विन्ध्याचल पर्वत पर हाथी के रुप में उत्पन्न हुआ है।” इतना सुनते ही सुनंदा की आँखों से आँसू की धार बहने लगी। उसने कहा, गुरुदेव ! मैं घर पापिनी हूँ। मेरे निमित्त से ही रुपसेन ने अपने इतने भव बर्बाद किए। मैं रुपसेन की अपराधिन हूँ। प्रभु क्या गति होगी ? रुपसेन ने तो मात्र मन से पाप किया तो उसकी यह स्थिति हो गई। परंतु मैंने तो मन के साथसाथ काया से भी घोर कुकार्य किया है। हे नाथ! मेरी क्या दशा होगी ? हे कृपालु ! अब आप मुझे कोई उपाय बताईए ताकि मेरा कल्याण हो। मुझे दुर्गति में भटकना न पड़े।” मुनिवर बोले “ सुनंदा, पाप करके पश्चाताप करने वाले विरले ही होते हैं। तुम उन्हीं में से हो। तुम्हें अपने पापों का पश्चाताप हो रहा है यही सबसे बड़ा प्रायश्चित है । पश्चाताप तो भयंकर पापी को भी पावन बनाता है। अब तुम प्रायश्चित पूर्वक संयम ग्रहण कर अपने साथ-साथ रुपसेन का भी उद्धार करों । "
सुनंदा तथा रुपसेन की जीवन कहानी सुनकर राजा को भी वैराग्य आ गया। राजा व रानी दोनों ने संयम जीवन अंगीकार कर लिया। साध्वी सुनंदा अब अपनी गुरुणी प्रवर्तिनी साध्वी के साथ ग्रामानुग्राम विचरने लगी। घोर तप, त्याग, साधना, आराधना तथा निर्मल ब्रह्मचर्य के प्रभाव से अल्प काल में ही उन्हें अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ। अपने ज्ञान द्वारा उन्होंने रुपसेन के जीव हाथी को सुग्राम के निकट जंगलों में भटकता पाया। उसे प्रतिबोध देने के लिए सुनंदा साध्वीजी अपनी गुरुणी की आज्ञा लेकर अपनी शिष्याओं के साथ सुग्राम नगर में आई।
एक दिन रुपसेन के जीव हाथी ने नगर में खूब आतंक मचा दिया। अपने रास्ते में आनेवाली हर वस्तु को सूँड से उठाकर दूर फेंककर वह पूरे नगर को तहस-नहस कर रहा था। सभी के मना करने के बावजूद सुनंदा साध्वी उस हाथी की ओर बढ़ी। हाथी ने जब दूर से सुनंदा साध्वी को अपनी ओर आते देखा । तब क्रोधावेश में, वह उन्हें मारने के लिए लपका। परंतु जैसे ही वह उनके नज़दीक पहुँचा वैसे ही उनके रुप पर मोहित हो गया । भवोभव के संस्कार इस भव में भी जागृत हो गए। वह सुनंदा के आस-पास घूमने लगा। तब योग्य समय जानकर सुनंदा साध्वी ने कहा “ रुपसेन जागो ! मेरे पीछे 6-6 भव बर्बाद कर तुमने अपार दुःख के सिवाय कुछ भी प्राप्त नहीं किया । और आज तुम वहीं भूल दोहरा रहे हो । हर भव में तुम मेरे पीछे पागल बनते रहे और मैं तुम्हारी मौत का निमित्त बनती रही। इतना सब सहन करने के बाद और कितने भव बर्बाद करोंगे ? रुपसेन अभी भी समय है। इस प्रकार विषयों में आसक्त बनकर अपनी भव
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