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देशना शुरु हो जाए और छ: महीने तक देशना चलती रहे तो वह बुढ़िया भी उसमें इतनी मग्न बन जाती है कि छ: महिने तक उसे बैठना भी याद नहीं आता। ___ अरे! प्रभु की वाणी की महिमा के बारे में और तो क्या कहे सिंह और बकरी, शेर और सियाल, साँप
और मोर, चूहा और बिल्ली परस्पर जाति-वैर को भूलकर पास-पास में एक साथ बैठते हैं । वहाँ किसी को किसी से ना कोई वैर है और ना ही कोई विरोध । सभी प्रेम-पूर्वक उत्कंठित हृदय से प्रभु वाणी सुनने में एक तान हो जाते हैं।
दिव्य ध्वनि रुप अतिशय से प्रभु की वाणी एक योजन प्रमाण भूमि तक फैलकर सर्वत्र एक समान आवाज़ में सुनाई देती हैं। उस समय सभी को लगता है मानो प्रभु हमें ही उपदेश दे रहे हो। इतना ही नहीं प्रभु की वाणी हित, मित, पथ्य, पैंतीस गुणों से युक्त होने से सभी को अपनी-अपनी भाषा में सुनाई देती हैं।
ज्यादा तो क्या कहे ? प्रभु के अतिशयों का वर्णन करना अर्थात् एक फुटपट्टी से एवरेस्ट की ऊँचाई मापने के बराबर हैं। यह वर्णन तो प्रभु के अतिशय रुपी सागर का एक बिंदु मात्र है। बाकी प्रभु का पुण्यातिशय तो कल्पनातीत हैं। ___ तो आईए! ऐसे अतिशय युक्त प्रभु को साक्षात् निहारने के लिए दृढ़ संकल्प बनाए "सीमंधर स्वामी के पास हमें जाना है" इस हेतु से चेप्टर में बताए गए उपायों का आज से ही जीवन में अमल करना
शुरु करें।
O) श्री सीमंधर स्वामी भक्ति गीत (.
___ (राग - याद तेरी आती है ....) सीमंधर स्वामी के पास हमें जाना है ..... संयम ले के, केवल पा के, मोक्ष हमें जाना है, चौराशी लाख जीव योनि में, अनंत काल से भटकु ..... (2) चारों गति में मेरे प्रभु, दुःख अपार मैं पाऊँ ..... (2) अब तो स्वामी दया करके (2) मुक्ती पुरी ले चलो, सीमंधर स्वामी .... कितने भवों तक भटका फिरा, प्रभु तेरा शासन न पाया ..... (2) पुण्योदय से जैन धर्म, इस भव में मैंने है पाया ..... (2) सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र दो, सीमंधर स्वामी ....
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॥2।।