Book Title: Jainism Course Part 02
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 149
________________ राय नंदु मारविउ सिरियउ रज्जि ठवेसह। राजा नन्दो न जानाति, शकडालस्य दुर्मतिम्, ___ हत्वैनं निजपुत्राय राज्यमेतत्प्रदित्सति।। अर्थात् शकडाल की दुर्बुद्धि, नंदराजा नहीं जानता। शकडाल मंत्री राजा को मारकर श्रीयक को राज्य दे देगा। राजा नंद के कानों तक यह बात पहुँचते ही उन्होंने इसकी जाँच करवाई। तब शकडाल के घर पर बन रहे शस्त्रों के बारे में उन्हें पता चला। इससे राजा मंत्री पर कुपित हो गए। उन्होंने शकडाल मंत्री के संपूर्ण परिवार को मार डालने का निर्णय लिया। दूसरे दिन शकडाल मंत्री ने राजसभा में राजा को प्रणाम किया। तब राजा ने मंत्री से मुँह फेर लिया। अचानक राजा के बदले व्यवहार से शकडाल मंत्री सारी परिस्थिति भांप गये। उन्होंने घर जाकर सारी स्थिति से श्रीयक को अवगत कराते हुए कहा – “पूरे परिवार को नाश होने से बचाने के लिए कल जब मैं राजा को प्रणाम करूँ तब तुम तलवार से मेरा सिर काट देना।" यह सुनते ही श्रीयक चौंक गया। उसने इस बात को अस्वीकार कर दिया। काफी समय तक चर्चा-विचारणा कर शकडाल मंत्री ने श्रीयक को समझाते हुए कहा - "आत्मबलिदान के बिना राजा के कोप से बचना मुश्किल है। और वैसे भी तुम मुझ पर तलवार चलाओ उसके पूर्व ही मैं मुंह में विष डाल दूंगा। अत: तुम्हें पितृ हत्या का पाप भी नहीं लगेगा।" इस प्रकार समझा-बुझाकर शकडाल मंत्री ने श्रीयक को यह कार्य करने हेतु तैयार कर दिया। दूसरे दिन राजसभा में शकडाल मंत्री ने जैसे ही राजा को प्रणाम करने के लिए अपना मस्तक झुकाया वैसे ही श्रीयक ने उन पर तलवार चला दी। मंत्रीश्वर का मस्तक धड़ से अलग हो गया। यह देखते ही पूरी राजसभा में हाहाकार मच गया। राजा ने श्रीयक से ऐसा कार्य करने का कारण पूछा। तब श्रीयक द्वारा सत्य घटना जानकर राजा के पश्चाताप का पार नहीं रहा। राजा ने श्रीयक को आश्वस्त कर अन्त्येष्टि की क्रिया करवाई। कुछ दिनों बाद जब पिता की मृत्यु का शोक थोड़ा कम हुआ। तब राजा नंद ने श्रीयक के समक्ष मंत्री मुद्रा ग्रहण करने का प्रस्ताव रखा। श्रीयक ने विनय पूर्वक अपने ज्येष्ठ भ्राता को यह पद देने का आग्रह किया। राजा ने तुरंत ही कोशा वेश्या के यहाँ से स्थूलिभद्र को बुलवाया। बारह-बारह वर्ष तक घर की ओर मुड़कर भी नहीं देखने वाले तथा पिता की मृत्यु से अनभिज्ञ स्थूलिभद्र को जब सारी सच्चाई बताई गई तब उनका मन खिन्न हो गया। ____ मंत्री मुद्रा ग्रहण करने के विषय में उन्होंने विचार करके जवाब देने की आज्ञा मांगी। समीप के बगीचे में जाकर उन्होंने सोचा "मैं व्यर्थ में क्यों इस राज्य कार्यभार के बंधनों में पढूं? यदि मैंने मंत्री मुद्रा (12D

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