Book Title: Jainism Course Part 02
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 147
________________ रहकर अपने सर्व घाति एवं अघाति कर्मों को क्षयकर प्रभु से पहले ही मोक्ष पद को प्राप्त किया। प्रभु का निर्वाण: कई जीवों को प्रतिबोध करते हुए परमात्मा ने सातंसों वर्ष केवली पर्याय में व्यतीत किए। आषाढ़ सुद अष्टमी की मध्यरात्री में चित्रा नक्षत्र के साथ चंद्रयोग होने पर एक मास का अनशन कर अपने अघाति कर्मों को क्षय कर 556 साधुओं के साथ सिद्धपद को प्राप्त किया। काम-विजेता स्थूलिभद। पाटलीपुत्र के अधिपति महाराजा नंद के शकडाल नामक मंत्री थे। राजा की वफादारी तथा राज्य सुरक्षा के भाव उनके रोम-रोम में बसे थे। उनके स्थूलिभद्र और श्रीयक नामक दो पुत्र तथा यक्षा आदि सात पुत्रियाँ थी। सातों बहनों का क्षयोपशम इतना तीव्र था कि यक्षा एक बार जो सूत्रादि श्रवण करती वह उसे कंठस्थ हो जाते थे। इसी प्रकार यक्षदिन्ना दो बार, भूता तीन बार, भूतदिन्ना चार बार, सेणा पाँच बार, वेणा छ: बार एवं रेणा किसी भी सूत्र को सात बार सुनने पर याद कर लेती थी। शकडाल मंत्री का पूरा परिवार जैनधर्म तथा जिनेश्वर देव के प्रति समर्पित था। धर्ममय वातावरण के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षण ग्रहण करते हुए सभी भाई-बहन बड़े हुए। बड़ा पुत्र स्थूलिभद्र परम वैरागी था। उसका जीवन देख उसके माता-पिता को यह चिंता होने लगी कि यदि इसका वैराग्य ऐसा ही रहा तो इसका संसार कैसे चलेगा? अत: उन्होंने उसके मन को परिवर्तित करने का कार्य उसके मित्रों को सौंपा। परंतु उन्हें निराशा ही हाथ लगी। शुरुवात में सारे मित्र उसे संसार के रंग-राग से आकर्षित करने का प्रयास करते परंतु स्थूलिभद्र का प्रतिभाव तथा मित्रों की दलिलों के समक्ष उनके तर्क इतने सचोट और सुंदर होते कि उनके सारे मित्र भी वैरागी बन जाते। यह देख उनके माता-पिता हताश बन गए। जब घी सीधी ऊँगली से न निकले तो ऊँगली टेढ़ी कर लेनी चाहिए ऐसा सोचकर उन्होंने स्थूलिभद्र को विचलित करने का कार्य बुद्धिनिधान चाणक्य को सौंपा। चाणक्य ने विचार किया कि भले ही स्थूलिभद्र बहुत चतुर तथा परम वैरागी है परंतु साथ-साथ वह कला प्रिय भी है। समान रुचि रखने वाले लोगों का तालमेल जल्दी होता है। अत: इन्हें विचलित करने के लिए एक ऐसा व्यक्ति चाहिए जिसमें अद्भुत कला कौशल हो। उसी समय पाटलीपुत्र में आम्रपालीका नृत्य में पारंगत कोशा वेश्या अपनी नृत्यकला तथा सौन्दर्य के कारण सर्वत्र प्रसिद्ध थी। चाणक्य ने उसे योग्य जाना तथा एक बार अति आग्रह कर स्थूलिभद्र को कोशा वेश्या के वहाँ ले गए। प्रथम बार ही कोशा के अपूर्व सौन्दर्य को देख स्थूलिभद्र उस पर मोहित हो गए। नृत्य शुरु हुआ। स्थूलिभद्र के हाव-भाव देखकर मौका अच्छा है ऐसा जानकर

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