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हो SweetHeart, पर डॉली मैं तुम्हारे पैसे कैसे ले सकता हूँ? नहीं, मैं ये पैसे नहीं ले सकता। डॉली : समीर! तुम ये क्या मेरी-तेरी बातें कर रहे हो ? जब मैं तुम्हारी हूँ। तो मेरा सब कुछ भी तुम्हारा ही तो
समीर : ओह डॉली! सच में तुम बहुत अच्छी हो, पर डॉली! फिलहाल तो इतने पैसों की हमें जरुरत नहीं है। एक काम करते है थोड़े पैसे साथ में रख लेते है और बाकी तुम्हारे नाम से बैंक में जमा कर देते हैं। डॉली : समीर! तुम ये क्या परायों जैसी बातें कर रहे हो। खाता तुम्हारे नाम से खोलना। समीर : ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा।
(यहाँ डॉली का पत्र पढ़कर डॉली के पिता को सदमे के कारण हार्ट-अटेक आ गया। सुषमा पर तो मानो दुःखों का पहाड़ टूट गया हो। एक तरफ डॉली भा
ग गई और दूसरी तरफ उसके पति की ऐसी हालत। ऐसी स्थिति में उसने सोचा कि मैं क्या करूँ ? किससे कहूँ। तब उसने अपने हर दुःख में साथ देने वाली अपनी सहेली जयणा को फोन किया। जयणा तुरंत ही अपने पति जिनेश के साथ सुषमा के घर पहुँची और तीनों आदित्य को हॉस्पीटल ले गये। जाँच के बाद डॉ. ने कहा कि “गहरे सदमे के कारण इन्हें हार्ट अटैक आ गया है। फिलहाल ये खतरे से बाहर है, पर आगे ध्यान रखने की जरुरत है।" आदित्य को होश आने पर वह रोने लगा और उसके मुँह से सिर्फ एक ही शब्द निकला 'डॉली'।) जिनेश : आप लोग आदित्य का ध्यान रखों। मैं डॉली की पूछताछ करता हूँ। मुझे लगता है वह कोर्ट मेरेज़ करने के लिए कोर्ट में गई होगी। मैं सबसे पहले वहीं जाकर देखता हूँ। (जिनेश वहाँ से निकला और उसने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ। डॉली उसे कोर्ट के बाहर मिली।) . जिनेश : डॉली बेटा! तुम यहाँ ? डॉली : (छुपाते हुए) हाँ अंकल, वो ऐसे ही मैं अपनी सहेली के साथ आई थी। जिनेश : झूठ मत बोलो डॉली। पता है तुम्हारे पापा को हार्ट-अटेक आ गया है। डॉली : ओह! तो उन्होंने आपको सब कुछ बता दिया है और अब मुझे तंग करने, मेरी सी.आई.डी. करने के लिए आपको भेजा है। उनसे कहना कि मुझे बहलाने की जरुरत नहीं है। बहुत देख लिए उनके नाटक। जिनेश : बेटा! ये कोई नाटक नहीं है। तुम्हारी माँ कितनी टेंशन में है। थोड़ी तो शर्म करो। जिसने तुम्हें आज तक पाल-पोसकर बड़ा किया, उनके बारे में एक बार तो सोचो। चलो, मेरे साथ। डॉली : सॉरी अंकल! अब मैं उनका मुँह भी नहीं देखना चाहती और फिलहाल मेरे पास समय भी नहीं है। जिनेश : बेटा! एक बार चलो...
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