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बीजे मृषावाद, 2. झूठ बोलना, अप्रिय और अहितकर भाषण करना । 'त्रीजे अदत्तादान, 3. किसी की वस्तु बिना पूछे ले लेना। 'चौथे मैथुन,
4. काम-भोग करना और उसकी वांछा करना । 'पांचमें परिग्रह,
5. प्रमाण उपरान्त द्रव्यादि पर मूर्छा रखना। 'छडे क्रोध,
6. गुस्सा होना, अपना परिणाम तीव्र क्रोधी रखना। 'सातमें मान,
7. प्राप्त या अप्राप्त वस्तु का घमण्ड रखना। आठमें माया,
8. स्वार्थिक बुद्धि से कपट-प्रपंच करना । 'नवमें लोभ,
9. धनादि समृद्धि का लालच रखना 1°दसमें राग,
10. पौद्गलिक वस्तु पर प्रेम रखना। "अग्यारमें द्वेष,
11.अनिष्ट पदार्थों पर अरुचि रखना या ईर्ष्या करना। "बारमें कलह, 12. झगड़ा-टंटा-फसाद करना, कराना।
तेरहमें अभ्याख्यान, 13. किसी पर झूठा कलंक चढ़ाना। "चौदमें पैशुन्य, 14. किसी की चुगली खाना, नारदविद्या का धंधा करना। "पन्नरमें रति अरति, 15. सुख मिलने पर आनन्द मानना और दुःख मिलने पर शोक-संताप करना। "सोलमें परपरिवाद, 16. दूसरों की निंदा करना ।(झूठी कथनी करना) "सत्तरमें मायामृषावाद, 17. कपट सहित झूठ बोलना। 1 अढारमें मिथ्यात्वशल्य, 18. कुदेवादि तत्त्वों का आग्रह (हठाग्रह) रखना। एअढार पापस्थानकमांहि, इन अठारह पाप स्थानों को या इनमें से मेरे जीव ने म्हारे जीवे जे कोई पाप जो कोई भी पापसेव्युं होय सेवराव्युं होय आचरण किया हो, दूसरों से आचरण करवाया हो सेवतां प्रत्ये अनुमोद्यु होय आचरण करने वाले को अच्छा माना हो तो तेसविहुंमन, वचन, कायाएकरी उन सब पापस्थान का मन, वचन और काया से मिच्छामि दुक्कडं। मिच्छामि दुक्कड़म् देता हूँ।
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