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"वर्णित है "ऐसा शाश्वत जैन धर्म धम्मो “वड्ढउ सासओ "वृद्धि को प्राप्त हो (और) "विजय की परंपरा से "विजयओ धम्मुत्तरं "वड्ढउ ।।4।। *चारित्र धर्म भी नित्य "वृद्धि को प्राप्त हो ।।4।।
___exp2.सिखाणं बुद्धाणं सूत्र मार
भावार्थ : इस सूत्र में सर्व सिद्धों की , श्री महावीर स्वामीजी की, श्री नेमिनाथ प्रभु की तथा अष्टापद पर्वत पर बिराजमान चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की है। 'सिद्धाण बुद्धाणं; 'सिद्ध पद को प्राप्त किए हुए, सर्वज्ञ (केवलज्ञान पाये हुए), 'पार-'गयाणं, परंपरगयाणं; संसार से पार गये हुए, पूर्व सिद्धों की परंपरा से सिद्ध बने हुए, 'लोअग्गमुवगयाणं, 'चौदह राजलोक के अग्र भाग को प्राप्त किए हुए ऐसे, 1°नमो सया'सव्व-सिद्धाणं ।।1।। 'सर्व सिद्ध भगवंतों को मेरा हमेशा "नमस्कार है ।। 1 ।। 'जो देवाण वि देवो, 'जो देवताओं के भी देव हैं, 'ज देवा पंजली'नमसंति। 'जिनको देव अंजलि-पूर्वक 'नमन करते हैं, "तं देव-देव-महियं जो इन्द्रों से पूजित है, "उन "सिरसा "वंदे "महावीरं ।।2।। "महावीर स्वामी को "सिर झुकाकर "मैं वन्दन करता हूँ ।।2 ।। 'इक्को विनमुक्कारो, . . 'केवली भगवंतो में उत्तम ऐसे श्री महावीर प्रभु को 'जिणवर-वसहस्स वद्धमाणस्स; 'किया हुआ एक भी नमस्कार 'संसार-'सागराओ "संसार रुपी 'समुद्र से "तारेइ नरंव नारिं वा ।।३॥ पुरुष अथवा स्त्री को "तिरा देता है ।।3 ।। 'उचिंत-सेल-सिहरे, 'गिरनार पर्वत के शिखर पर 'दिक्खा नाणं 'निसीहिआ जस्स; 'जिनकी दीक्षा, केवलज्ञान और 'निर्वाण हुआ है; 'तं धम्मचक्कवट्टि,
उन धर्म-चक्रवर्ती "अरिहनेमि "नमसामि ।।4।। 1°श्री नेमिनाथ भगवान को 'मैं नमस्कार करता हूँ ।।4 ।। 'चत्तारि- अट्ठ-दस-'दोय, (अष्टापद पर) 'चार, आठ, दस, दो (ऐसे क्रम से)