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डॉली : समीर! तुम तो समझो मेरी हालत......
समीर : चुप रहो डॉली ! बहुत देख लिया तुम्हारा नाटक ।
(बेचारी डॉली। घर पर जिसने एक ग्लास पानी भी कभी अपने हाथों से नहीं भरा, जिसे घर में रानी की तरह रखा गया था। आज उसके साथ काम करने वाली नौकरानी जैसा बर्ताव हो रहा था। डॉली को अब महसूस होने लगा कि यह सब पैसों का खेल था और इस खेल को खेलने के लिए समीर ने फुटबॉल की तरह उसका उपयोग किया। पैसे थे तब तक प्यार था । पैसे पूरे और प्यार खत्म और इसलिए शायद समीर बार-बार मुझे पियर से पैसे लाने के लिए फोर्स कर रहा है।
इस प्रकार रोज-रोज की झंझट से थककर एकबार डॉली ने सोचा कि “यदि मैं माता-पिता की इच्छा से शादी करती और ससुराल जाने के बाद पैसे मंगवाती तो वे मुझे जरुर पैसे भेजते। यानि कि अब भी उनके पैसों पर मेरा पूरा अधिकार है और न भी हो तो आखिर वे मेरे माँ-बाप है । मेरी ख़राब परिस्थिति देख उनका दिल पिघल जाएगा और वह मेरी मदद जरुर करेंगे। अब कुछ दिनों में डिलेवरी आएगी तो बच्चे की परवरिश के लिए पैसों की जरुरत तो पड़ेगी ही। रोज-रोज की इस झंझट से तो अच्छा है कि एक बार मम्मी फोन लगा ही दूँ। कम से कम इससे समीर और मेरे बीच के रिश्ते तो सुधर जायेंगे” ।
ऐसा सोचकर डॉली ने फोन उठाया । जिनकी खराब परिस्थिति पर डॉली का दिल नहीं पिघला था। आज अपनी खराब परिस्थिति में डॉली उन्हीं लोगों का दिल पिघलने की अपेक्षा रख रही थी। खैर अब आगे क्या होता है? क्या डॉली अपने घर पर फोन से बात करेगी? क्या उसके माता-पिता पैसों द्वारा उसकी मदद करेंगे? या फिर डॉली को उसी हालत में रोता छोड़ देंगे? इस फोन के बाद क्या डॉली और समीर के रिश्ते में मधुरता आ पायेगी ? या फिर डॉली के जीवन में कुछ और ही होगा ? देखेंते जैनिज़म के अगले खंड में ।
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(डॉली के भाग जाने के बाद उसी के साथ विदा हुई अपने घर की खुशियों को वापस लाने के लिए सुषमा ने अपने बेटे प्रिन्स की शादी करवाई। अपनी बेटी डॉली को तो वास्तविक माँ बन संस्कार देने के विषय में सुषमा मार खा गई, परंतु क्या अब वह अपनी बहू के साथ बेटी जैसा बर्ताव कर पाती है? या फिर कुछ और ही होता है? देखते है। जैनिज़म के अगले खंड " सासु बनी माँ” में
ज़हर बना अमृत
जैनिज़म के पिछले खंड में आपने देखा कि जयणा ने अपनी पुत्री के जीवन को संस्कारित बनाने में कोई कमी नहीं रखी और अच्छा रिश्ता देखकर, सुयोग्य हितशिक्षा देकर उसे ससुराल विदा किया। अब
आगे....
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