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प्रकाशक की ओर से
बालकों का स्वभाव और उसके प्रति अपनी परिस्थितियों में प्रस्त माता-पिताओं या अभिभावकों का व्यवहार जब आपस में सन्तुलित नहीं होते, एक-दूसरे को नहीं समझते तो अनेक समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं । मानव-प्रेम का वात्सल्य-भाव सब में है, किन्तु सब उसे ठीक से समझते नहीं । उसे कलाकार की अन्तदृष्टि ही देख-समझ पाती है। मानव-मन के इस यथार्थ को उदघाटित करने वाली प्रस्तुत संग्रह की अठारह कहानियाँ इसी अन्तर्दृष्टि के आलोक से आलोकित हैं।
इस संग्रह में 'पाजेब' और 'दो चिड़िया' कहानियाँ भी हैं जिनके नाम से पहले दो अलग-अलग कहानी-संग्रह प्रकाशित हुए थे। 'दो चिड़िया' कहानी-संग्रह की भूमिका-स्वरूप लेखक ने कहानी के विषय में पाठकों से लिखा था
..."पाठक मुझ से और हिन्दी के और लेखकों से माँग करें