Book Title: Jainagamo me Syadvada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
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श्री प्रज्ञापनोपाङ्ग पञ्चम पर्यायपदम् २०१ पचिंदियतिरिक्वजोणियाणं अणंता पज्जवा पन्नत्ता ?, गोयमा ! जहन्नठिइए पंचिंदियतिरिक्खजोणिए जहन्नठिइयस्स पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स दव्य. हयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणयाए चउहाणवडिए ठिईए तुल्ले वन्नगंधरसफामपञ्जवेहि दोहिं अन्नाणेहिं दोहिं दसणेहिं छटाणवडिए उक्कामठिइएवि एवं चेव णवरं दो नाणादोअन्नाणा दो दंगणा, अजहन्नमणुक्कोसठिइएवि, एवं चेव, नवरं ठिडए चउट्टाणवहिए तिन्नि णाणा तिन्नि अन्नाणा तिन्नि दसणा । जहन्नगुणकाल गाणं भंते । पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा गोयमा ! अन्नन्ता पजवा पन्नत्ता, से केपटटेण भंते । एवं वुचइ ?, गोयमा ! जहन्नगुणकालए पंचिंदियतिरिक्खजाणिए जहन्नगुणकालगम्स पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्म दव्वळ्याए तुल्ले पएमठ्याए तुल्ले ओगाहणटठयाए चउटठाए वडिए ठिईए चउहाण वडिए कालवन्नपजवेहिं तुल्ले अरसेसेहिं वनगधरमफामपञ्जवेहिं तिहिं नाणेहिं तिहिं अन्नाणेहिं तिहिं दमणेहिं छहाणपटिए, एवं उक्कामगुणकालएवि अजहन्नमणुकोसगुणकालएवि. एवं चेव नवर मटाणे छटारण

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