Book Title: Jainagamo me Syadvada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana

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Page 268
________________ जैनागमों मे स्याद्वाद नीयम सुगमतारा नवरमन तप्रदेशोत्कृष्ठावगाहनाचिन्तायां' टिईवि तुल्ले इन उत्कष्टावगाहन किलानन्तप्रदेशक स्कन्ध स पुच्यते य समस्तलाकव्यापी स चाचित्तमहास्कन्ध केवलिसमुद्घातकर्मकन्यो वा तयाश्चोभयोरपि दण्डकपाटमन्थान्तरपूरणलक्षण चतु ममयप्रमाणतेति तुल्यकालता शेष सूत्रमापदपरिसमाप्त प्रागुक्तभावनाऽनुमारेण स्वयमुपयुज्य परिभावनीयं सुगमत्वात् , नवर जघन्यप्रदेशका कन्धा द्विप्रदेशका उत्कृष्टप्रदेशका सर्वो. स्कृष्टानन्तप्रदेशा ॥ इति श्रीमलयगिरिविरचिताया प्रज्ञापनाटीकाया बिगेपारव्य पद ममाप्तम ॥ - NAMOB - - -

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