Book Title: Jainagamo me Syadvada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
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जैनागमों मे स्याद्वाद
२४:
नवरमनन्तप्रदेशोत्कृावगाहना चिन्तायां'
नीयम सुगमतात् दिईएवि तुल्ले' इति उत्कृष्टावगाहन किलानन्तप्रदेशक' स्कन्ध स उच्यते समस्त लोकव्यापी स चाचित्तमहास्कन्ध केवलसमुद्चातकर्मस्कन्धो वा तयोश्रो भयोरपि दण्डकपाट मन्थान्तरपूरणलक्षण चतु समयप्रमाणतेति तुल्यकालता शेष सूत्रमापदपरिसमाप्तं प्रागुक्तभावनाऽनुसारेण स्वयमुपयुज्य परिभावनीयं सुगमत्वात्, नवर जघन्यप्रदेशका स्रुत्वा द्विप्रदेशका उत्कृष्टप्रदेशका सर्वोत्कृष्टान्तप्रदेशा ॥ इति श्रीमलयगिरिविरचितायां प्रज्ञापनाटीकाया विरोपारव्य पद समाप्तन ॥

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