Book Title: Jainagamo me Syadvada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana

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Page 255
________________ श्री प्रज्ञापनोपाङ्ग पञ्चम पर्यायपढम् २२६ वेहि य वत्तव्य र माणियव्वा, नवर परमाणुपोग्गलस्स दुभिगधस्स दुभिगंधो न भएणइ दुभिगधस्स सुमिगधो न भएणड तित्तस्स अवसेसे न भएणति एवं कडुयादीणवि, अवसेसं त चेव, जहन्नगुणकक्खडाणं अण तपएसियाण खंबोणं पुच्छा, गोयमा ! अणंता पञ्जवा पन्नत्ता, से केणणं भंते ! एवं बुच्चद् ?, गायमा ! जहन्नगुणकवडे अणंतपएसिए जहन्नगुणकरखडस्म अणतपएसियस्स दबयाए तुल्ले पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए अोगाहणठ्याए चउट्टार वडिए टिईए चउट्टाणवडिए वन्नगंधरसेहि छट्टाणवडिए काखडफासपजवेहिं तुल्ले अवसेसेहि सत्तफामपज्जवेहिं छटाणवहिए, एवं उदोसगुणकक्वडेवि, जहन्नमणुकोमगुणकवडेवि एवं चेव, नवरं सहारपे छटाण वडिए, एव महयगुरुपलहुएवि माणियचे, जहन्नगु सीयाणं भंते । परमाणुपागलाएं पुच्छा, गोयमा ! अणंता पजवा पन्नचा, से पेशस्टेण भते । एवं चुनइ ?, गोयमा ! जहन्नगुरानीय परमाणुपोग्गले जहन्नगुणसीतम्म परमाणुपुग्गलस्म दव्वद्र्याए तुल्ले पएमट्टयाए तुल्टे श्रोगाहपटठ

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