Book Title: Jainagamo me Syadvada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
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२३०
जैनागमों मे स्याद्वाद
याए तुल्ले ठिईए चउट्ठाण वडिए वन्गंधरसेहि छटाणवडिए सीयफासपञ्जवेहि य तुल्ले उसिण फामों न भणति निद्धलक्खफासपज्जवेहि य छटाणवडिए एव चेव, नवरं सट्ठाण छठ्ठाणवडिए, जहन्नगुणसीताणं दुपदेसियाणं पुच्छा, गोयमा। अणता पउजवा पन्नत्ता, से केणटठेणं भंते ! एवं बुच्चइ ?, गोयमा ! जहन्नगणसीते दुपएसिए जहन्नगुणसीतस्स दुपदेसियस्स दवयाए तुल्ले पएसठ्ठयाएतुल्ल गाहण
ट्ठयोए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अमहिए जइ हीणे पएसहीणे (अह) अहिए पएसअन्महिए टिईए चउढाणवडिए वनगंधरसपज्जवेहिं छहाणवडिए, मीयफासपज्जवेहिं तुल्ल उसिणनिद्धलक्खफासपज्जवेहि छटाणवडिए, एवं उक्कोसगुणसीतेवि, अजहन्नमणुकोसगुणसीतेवि एवं चेव, नवरं सट्ठाण छट्ठाण वडिए, एवं जाव दसपए सिए, णवरं ओगाहणटठयाए पएसपरिघुडढी कायव्या, जात्र दसपएसियस्स नवपएसा बुढिज्जति, जहन्नगुणमीयाणं संखेज्जपएसियाणं पुच्छा, गोयमा ! अणंता पज्जवा पन्नत्ता, से केणढेणं मंते ! एवं बुच्चइ ?, गोयमा ! जहन्नगुगामीने संखिज्जपए सिए जहन्नगणसीतस्स मंखि

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