Book Title: Jainagamo me Syadvada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
View full book text
________________
२२६
जैनागमों मे स्याद्वाद
जहन्नठिइयाणं अणं तपएमियाणं पुच्छा, गोयमा ! अणं त पज्जवा पन्नता, से केणठेणं भंते । एवं बुच्चइ ?, गोयमा । जहन्नठिइए अणंतपए सिए जहन्नठिइयस्स अणंतपएसियस्स दबटठयाए तुल्ले पएसट्टयाए छटाणवडिए अोगाहणटठयाए चउहाणवडिए ठिईए तुल्ले वएणाइ अटठफासे हि य छट्ठाणवडिए, एवं उक्कोम विठइएवि, अजहन्नमणुक्कोसठिइएवि एवं चेव, नवरं ठिईए चउहाणवडिए जहन्नगुणकालयाण परमाणुपुग्गलाणं पुच्छा, गोयमा!, अणंत पज्जवा पन्नचा, से केणठेणं भंते ! एवं बुचइ १, गोयमा ! जहन्नगुणकालए परमाणुपुग्गने जहन्नगुणकालगस्स परमाणुपुग्गलस्स दबटठयाए तुल्ले पए मटठयाए तुल्ले आगाहणटठयाए तुल्ले ठिईए चउहाण वडिए कालबन्नवजवेहिं तुल्ले अवसमाहि वएणा नत्थि, गवरमदुफामपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए, एव उक्कामगुणकालएवि, एवमजहन्नमणुक्कोसगुणकालए वि, णवरं सहाणेछट्ठाण वडिए, जहन्नगुणकालयाणं मते ! दुपएसियाण पुच्छा, गोयमा ! अणंता पज्जया पन्नत्ता, से केणटण भते! एव

Page Navigation
1 ... 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289