Book Title: Jainagamo me Syadvada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana

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Page 246
________________ जैनागमों में स्याद्वाद ठिईए चउटठाणबडिए वण्णाइअफासेहिं छट्ठाणवडिए । एगसमयठियाणं पुच्छा गोयमा । अणंता पज्जवा पन्नत्ता, से केणटेण भंते ! एव चुच्चइ ?, गोयमा । एगममयठिइए पोग्गले एगपमयठियम्स पोग्गलस्म दबठ्याए तुल्ले पएमटठयाए छटठाणवडिए योगाहणटठयाए चउठाणवडितेठितीए तुल्ले वएणाइअटफासेहिं छटठाणवडिए एवं जाव दसममयठिइए , खेज्जयमय ठिइयाणं एवं चेव, ण वरं ठिईए दुट्टाणवडिए, अखेज्जयमयटिइयाणं एवं चेव, नवरं ठिईर चउटठोणवडिए, एकगुणकोलगाण पुच्छा, गोयमा । अणंता पन्जवा पन्नत्ता, से केणटटेणं भंते ! एवं बुच्चइ १, गोयमा ! एकगुणकालए पोग्गले एकगुणकालगम्म पोगालस्स दबयाए तुल्ल पए सट्टयाए छटटाणवडिए योगाहणट्ट्याए चउ ढोणवडिए टिईए चउट्टाणवडिए कालवन्नपज्जवहिं तुल्ले अवसेसेहिं वन्नगंधरमफासपज्जवेहि छटठागावटिए अटटफासेहिं छट्ठाण वडिए, एवं जाव दसगुणकालए, मंग्वजगुग्णकालगवि एवं चेव, नवरं सट्टाणे दुट्टाणबटिग, एवं असग्विजगुणकालएवि नवरं सट्टाणे च उट्टागणवडिए, एवं गणंतगुणकालरात्रि नवरं

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