Book Title: Jainagamo me Syadvada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
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__ श्री प्रज्ञापनोपाङ्ग पञ्चमं पर्यायपदम्
०१७
हीणे सिय तुल्ले सिय अभहिए जइ होणे अणंतभागहीण वा असंखिज्जइभागहीणे वा सखिज्जइ. भागहोणे वा सखिज्जगुणहीण वा असखिज्जगुणहीण वा अगतगुणहीणे वा अह अमहिए अणतभागअमहिए वा असखिज्जइभागमहिए वा संखिज्जभागअन्महिए वा अणतगुणममहिए वा एवं अवसेसवन्नगधरसफामपज्जवेहि छट्ठाणवडिए फासाण सियउसिण निद्धलु खेहिं छहाणव डिए, से तेणठूर्ण गोयमा । एवं बुच्चइ-परमाणुपागलाण अणता पज्जचा पन्नत्ता दुपएमियाण पुच्छा गोयमा । अणता पज्जवा पन्नत्ता ?, से केणद्वेण भते ! एव वुचइ १, गोयम ! दुपए सिए दुपएमियस्स दवयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणट्ठयाए सिय हीणो सिय तुल्ले सिय अमहिए जइ हीरों पए सहीरो अह अभहिए पए समन्महिए ठिईए चउट्ठाण वडिए वन्नाईहिं उवरितलेहिं चउफासेहिं य छटार वडिए, एवं तिपएसेवि, नवरं ओगाहणब्यांए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अमहिए जइ ही पएसहीणो वा दुपएसोहीणे वा, अह अमहिए पएसमभहिए वा

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