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संकेतिका
इसके रचयिता हैं-आचार्य पूज्यपाद। इस पर विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के विद्वान् आशाधरजी की टीका है। 'इष्टोपदेश' में दो शब्द हैं-इष्ट और उपदेश। इष्ट का अर्थ है-मोक्ष और उपदेश का अर्थ है-प्रतिपादन अर्थात् मोक्ष का प्रतिपादक शास्त्र। हित-संपादन के अनेक उपाय हैं। उनके समवायों का अवलंबन लेकर अनन्त चतुष्टयी को प्राप्त कर लेना ही मोक्ष है। यही इष्ट है। इस ग्रंथ में ५१ श्लोक हैं और इनका मुख्य प्रतिपाद्य है-अध्यात्म। अध्यात्मयोगी का स्वरूप यह है
'ब्रूवन्नपि हि न ब्रूते, गच्छन्नपि न गच्छति। स्थिरीकृतात्मतत्त्वस्तु, पश्यन्नपि न पश्यति॥'
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