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संकेतिका
___'ज्ञानसार' ग्रंथ के कर्ता हैं-उपाध्याय श्री यशोविजयजी। इनका जन्म गुजरात के पाटन शहर के पास ‘कानोड़ा' गांव में हुआ। ये विद्वान् मुनि नयविजयजी के पास वि. सं. १६८८ में दीक्षित हुए और वि. सं. १७१८ में उपाध्याय पद प्राप्त किया। पच्चीस वर्ष तक इस पद को सुशोभित कर वि. सं. १७४३ में 'डमोई' (गुजरात) में अनशनपूर्वक समाधिमूत्यु को प्राप्त हुए।
। इन्होंने 'जैन तर्कभाषा', 'स्याद्वादकल्पलता', 'ज्ञानबिन्दु', 'नयप्रदीप', 'नयरहस्य' आदि दार्शनिक ग्रंथों तथा 'ज्ञानसार', 'अध्यात्मसार', 'अध्यात्मोपनिषद्' आदि अध्यात्म-ग्रंथों का प्रणयन किया।
'ज्ञानसार' ग्रंथ बत्तीस अष्टकों में संदब्ध है। प्रत्येक अष्टक भिन्न-भिन्न विषय पर है। हमने इन अष्टकों से श्लोकों का चयन कर 'ज्ञानसार चयनिका' के रूप में प्रस्तुत किया है।
'निर्विकारं निराबाधं, ज्ञानसारमुपेयुषाम्। विनिवृत्तपराशानां, मोक्षोऽत्रैव महात्मनाम्॥'
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