Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1 Author(s): Saumyagunashreeji Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur View full book textPage 9
________________ 2800000 प्रकाशकीय किसी भी धर्म, समाज या संस्कृति के आभ्यन्तर स्वरूप का साक्षात् अवबोध करना अथवा दीर्घ या पूर्णकालिक घटक तत्त्वों का श्रृंखलाबद्ध आलेखन करने का नाम इतिहास है। इतिहास का संपोषक तत्त्व है साहित्य! साहित्य के माध्यम से इतिहास सजीव आकार धारण करता है। वस्तुतः साहित्य वह विधा है जो इतिहास का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करती है। सज्जनमणि गुरुवर्या श्री शशिप्रभा श्रीजी म.सा की अन्तेवासिनी विदुषीवर्या साध्वी सौम्यगुणाजी ने इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने विधि-विधान परक जैन साहित्य के इतिहास को लिखकर एक कमी पूर्ति की है। सत्प्रयासों के सुपरिणाम अवश्य होते है अतः यह कृति धर्मसंघ के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। साध्वी श्री बहुमुखी प्रतिभा की धनी है। हमारा मालेगांव संघ इन साध्वीवर्या के मार्गदर्शन से लाभान्वित होता रहा है। आज इस ऐतिहासिक ग्रन्थ का प्रकाशन करते हुए जिनकुशलसूरिदादाबाड़ी बाडमेर ट्रस्ट, मालेगांव का कण-कण पुलकित व हर्षविभोर है। श्री संघ का यह सौभाग्य है कि उन्हें श्रुतसेवा का यह अनुपम एवं स्वर्णिम अवसर मिला है। आशा करते है .इस इतिहास को सराहा जायेगा और यह धर्मोन्मुखी साधकवर्ग के लिए नवोन्मेष का दीप प्रज्वलित करता रहेगा। जिनकुशलसूरि दादाबाड़ी ट्रस्ट मालेगांव 00000000000000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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