Book Title: Jain Tattvasara Saransh
Author(s): Surchandra Gani
Publisher: Jindattasuri Bramhacharyashram

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Page 12
________________ द्वितीय भाग. इस भाग में जैनतत्त्वसार नामक पुस्तक नवीन शैली से प्रकाशित किया गया है। यह पुस्तक अध्यात्मज्ञान जड चेतन सम्बंधी ज्ञान विस्तारपूर्वक वर्णन करने के साथ २ विस्तार सहित ज्ञानप्रकाश जीव अजीव, मोक्षादि तत्त्व का वर्णन लोकप्रसिद्ध दृष्टांतों सहित जो आसानी से समज में आ सकें। वीस अधिकार नवीन ढंग से लिखते हुवे आत्मा और कर्म का स्वरूप, कर्म और आत्मा का सम्बंध कैसा है ? कर्म के जीव के कितने भेद हैं ? जीव कर्मों . को किस प्रकार नष्ट कर के मोक्ष प्राप्त करता है ? विना शरीर के अवयवों की सहायता जीव कर्म का कैसे बंध करता है ? सिद्ध भगवंत कर्मो से क्यों पृथक् है ? मोक्ष में कैसा उन का सुख है ? मुक्ति द्वार कभी बंद हुवा नही और होगा भी नहीं ? ईश्वर सृष्टि रच सकता है या नहीं ? ईश्वर प्रलय कर सकता है या नहीं ? जगत की रचना में ईश्वर कारणभूत है या नहीं ? मनुष्यमात्र सुख-दुःख क्यों भोगते है ? सृष्टिवाद का क्या स्वरूप है? अंत में ज्योति में ज्योति कैसे समाती है ? सिद्ध के जीवों को संकीर्णता

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