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भी जैनसिद्धान्त बोल संग्रह
५७३-संयम आठ - मन, वचन और काया के व्यापार को रोकना संयम है। इसके पाठ भेद हैं. (१) प्रेक्ष्यसंयम- स्थण्डिल या मार्ग आदि को देख कर प्रवृत्ति करना. प्रेक्ष्यसंयम है। (२) उपेक्ष्यसंयम-- साधु तथा गृहस्थों को आगम में बताई हुई शुभ क्रिया में प्रवृत्त कर अशुभ क्रिया से रोकना उपेक्ष्यसंयम है। (३) अपहृत्यसंयम-संयम के लिये उपकारक वस्त्र पात्र आदि वस्तुओं के सिवाय सभी वस्तुओं को छोड़ना अथवा संसक्त भातपानी आदि का त्याग करना अपहृत्यसंयम है। (४) प्रमृज्यसंयम- स्थण्डिल तथा मार्ग आदि को विधिपूर्वक पूँज कर काम में लाना प्रमृज्यसंयम है। (५) कायसंयम- दौड़ने, उछलने, कूदने आदि का त्याग कर शरीर को शुभ क्रियाओं में लगाना कायसंयम है। (६) वाक्संयम- कठोर तथा असत्यवचन न बोलना और शुभ भाषा में प्रवृत्ति करना वाक्संयम है। (५) मनसंयम- द्वेष, अभिमान, ईर्ष्या आदि छोड़ कर मन को धमेध्यान में लगाना मनसंयम है। (८) उपकरणसंयम-- वस्त्र, पात्र, पुस्तक आदि उपकरणों को सम्भाल कर रखना उपकरणसंयम है।
(तत्त्वार्थाधिगमभाष्य प्रध्याय ६.सूत्र. ६) ५७४-गणिसम्पदा आठ ___ साधु अथवा ज्ञान आदि गुणों के समूह को गण कहा जाता है। गण के धारण करने वाले को गणी कहते हैं। कुछ साधुओं को अपने साथ लेकर आचार्य की प्राज्ञा से जोअलग विचरता है, उन साधुओं के प्राचार विचार का ध्यान रखता हुआ जगह