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( ७८ ) (ए) सामग्री के अनुसार (आधीन)सुख-दुख नही है साता-असाता का उदय होने पर मोह के परिणमन के निमित्त से ही सुख-दुख मानते
(ऐ) निर्धार करने पर मोह ही से सुख-दुःख मानना होता है; औरो के द्वारा सुख-दुख होने का नियम नही।
(ओ) तू सामग्री को दूर करने का या होने का उपाय करके दुख मिटाना चाहता है और सुखी होना चाहता है सो यह उपाय झूठा है। तो सच्चा उपाय क्या ? सम्यग्दर्शनादि मे भ्रम दूर हो तव सामग्री से सुख-दुःख भासित नहीं होता, अपने परिणामो से ही भासित होता
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ६०) (ओ) जो अपने को सुखदायक हो, उपकारी हो उसे इष्ट कहते हैं तथा जो अपने को दु.खदायक हो, अनुपकारी हो उसे अनिष्ट कहते है। लोक मे सर्व पदार्थ अपने-अपने स्वभाव के ही कर्ता हैं कोई किसी को सुख-दुखदायक उपकारी-अनुपकारी है नहो।
[मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ८६] (अ) कपायभाव होते है मो पदार्यों को इष्ट-अनिष्ट मानने पर होते है सो इण्ट-अनिष्ट मानना भी मिथ्या बुद्धि है क्योकि कोई पदार्थ इप्ट अनिष्ट है नही।
[मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ८६] (अ) पर द्रव्यो का दोप देखना मिथ्या भाव है।
[मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २४३] (क) प्रथम तो पर द्रव्यो को इष्ट-अनिष्ट मानना ही मिथ्या है, क्योकि कोई द्रव्य किसी का मित्र-शत्रु है नही ।
[मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ १७५] (ख) पर द्रव्यो को इप्ट-अनिष्ट मानकर रागद्वप करना मिथ्यात्व है क्योकि ससार का कोई पदार्थ इष्ट-अनिष्ट होता तो मिथ्यात्व नाम नही पाता। परन्तु कोई पदार्थ इष्ट-अनिष्ट नहीं है और यह इप्ट