Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 294
________________ ( 268 ) उत्तर-हिंसादि पापास्रव हेय है, अहिंसादि पुण्यास्रव उपादेय हैऐसा मानता है। प्रश्न २-अहिंसादि पुण्यास्रव उपादेय है ऐसी खोटी मान्यता को छहढाला की प्रथम ढ़ाल मे क्या बताया है ? उत्तर-"मोह महामद पियो अनादि" मोह रूपी महा मदिरा पान बताया है। प्रश्न ३-अहिंसादि पुण्यालव उपादेय है ऐसी खोटी मान्यता का फल छहनाला की प्रथम ढाल मे क्या बताया है ? उत्तर-चारो गतियो मे घूमकर निगोद इस खोटी मान्यता का फल बताया है। प्रश्न ४-अहिंसादि पुण्यात्रव उपादेय है, ऐसी खोटी मान्यता का "फल छहढाला की प्रथम ढाल में घूमकर निगोद क्यों बताया है ? उत्तर-आत्मा का स्वभाव वीतराग विज्ञानता रूप है और अहिंसादि पुण्यास्रव त्याज्य-हेय है। अज्ञानी ऐसा न मानकर अहिंसादि पुण्यास्रव को उपादेय मानने के कारण इस खोटी मान्यता का फल चारो गतियो मे घूमकर निगोद बताया है। प्रश्न ५-अहिंसादि पुण्यास्रव उपादेय है-ऐसी खोटी मान्यता 'को छहढाला की दूसरी ढाल मे क्या-क्या बताया है ? उत्तर-(१) अहिंसादि पुण्यास्रव उपादेय है, ऐसी खोटी मान्यता को आस्रवतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल बताया है। (2) अहिंसादि पुण्यास्रव उपादेय है, ऐसा अनादि काल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे श्रद्धान को अगृहीत मिथ्यादर्शन बताया है। (3) अहिंसादि पुण्यास्रव उपादेय है, ऐसा अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे ज्ञान को अगृहीत मिथ्याज्ञान बताया है। (4) अहिंसादि पुण्यास्रव उपादेय है, ऐसा अनादिकाल से एकएक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे आचरण को अगृहीत मिथ्या चारित बताया है। (5) वर्तमान मे विशेष रूप से मनुष्यभव

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