Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 303
________________ ( 307 ) भूलकर अनशनादि तप को निर्जरा मानने रूप खोटी मान्यता को छह ढाला की प्रथम ढ़ाल में क्या बताया है ? उत्तर-"मोहमहामद पियो अनादि" मोहरूपी महा मदिरापान बताया है। प्रश्न ३-आत्मा के आश्रय से शुद्धि की वृद्धि रूप निर्जरा को भूलकर अनशनादि तप को निर्जरा मानने रूप खोटी मान्यता का फल छहढाला की प्रथम ढाल में क्या बताया है ? उत्तर-चारो गतियो मे घूमकर निगोद-इस खोटी मान्यता का फल बनाया है। प्रश्न ४-आत्मा के आश्रय से शुद्धि की वृद्धि रूप निर्जरा को भूलकर अनशनादि तप को निर्जरा मानने रूप खोटी मान्यता का फल पारो गतियो में घूमकर निगोद क्यो बताया है ? उत्तर-आत्मा के आश्रय से शुद्धि की वृद्धि ही निर्जरा है परन्तु अज्ञानी के अनशनादि बाह्य तप को निर्जरामानने का फल चारो गतियों मे घूमकर निगोद बताया है। प्रश्न ५-आत्मा के आश्रय से शुद्धि की वृद्धि रूप निर्जरा को भूलकर अनशनादि तप को निर्जरा मानने रूप खोटी मान्यता को छहदाला की दूसरी ढाल में क्या-क्या बताया है ? उत्तर-(१) आत्मा के आश्रय से शुद्धि की वृद्धि रूप निर्जरा को भूलकर अनशनादि तप को निर्जरा मानने रूप मान्यता को निर्जरातत्व सम्बन्धी जीव की भूल बताया है। (2) आत्मा के आश्रय से शुद्धि की वृद्धि रूप निर्जरा को भूलकर अनशनादि तप को निर्जरा मानने रूप मान्यता को अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे श्रद्धान को अगृहीत मिथ्यादर्शन बताया है। (3) आत्मा के आश्रय से शुद्धि की वृद्धि रूप निर्जरा को भूलकर अनशनादि तप को निर्जरा मानने रूप मान्यता को अनादिकाल से एक-एक समय चला आरहा होने से ऐसे ज्ञान को भगृहीत मिथ्यात्व बताया है। (4) आत्मा

Loading...

Page Navigation
1 ... 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317