Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 307
________________ ( 311 ) सम्बधी जीव की भूल बताया है। (2) मोक्ष मे पूर्ण निराकुल सुख है, ऐसा न मानकर शरीर के मौज-शौक मे ही सुख मानने रूप मान्यता को अनादिकाल से एक-एक समय कर के चला आ रहा होने से ऐसे श्रद्धान को अगृहीत मिथ्यदर्शन बताया है। (3) मोक्ष मे पूर्ण निराकुल सुख है, ऐसा न मानकर शरीर के मौज-शौक मे ही सुख मानने रूप मान्यता को अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे ज्ञान को अगृहीत मिथ्या ज्ञान बताया है। (4) मोक्ष में पूर्ण निराकुल सुख है, ऐसा न मानकर शरीर के मौज-शौक मे ही सुख मानने रूप मान्यता को अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे आचरण को अग्रहीत मिथ्याचारित्र बताया है। (5) वर्तमान में विशेष रूप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म होने पर भी कुदेव-कुगुरु-कुशास्त्र का उपदेश मानने से शरीर के मौज-शौक में ही सुख मानने रूप मान्यता को, अनादिकाल का श्रद्धान विशेष दृढ होने से ऐसे श्रद्धान को गृहीत मिथ्यादर्शन बताया है। (6) वर्तमान में विशेष रूप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म होने पर भी कुदेव-कुगुरुकुशास्त्र का उपदेश मानने से शरीर के मौज-शोक मे ही सुख मानने रूप मान्यता को अनादिकाल का ज्ञान विशेप दृढ होने से ऐसे ज्ञान को गृहीत मिथ्याज्ञान वताया है / (7) वर्तमान में विशेष रूप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म होने पर भी कुदेव-कुगुरु-कुशास्त्र का उपदेश मानने से शरीर के मौज-शौक मे ही सुख मानने रूप मान्यता को मनादिकाल का आचरण विशेष दृढ होने से ऐसे आचरण को गृहीत मिथ्याचारित्र बताया है। प्रश्न ६-मोक्ष में पूर्ण निराकुल सुख है ऐसा न मानकर शरीर के मौज-शौक में ही सुख मानने रूप मान्यता को मोक्षतत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव होकर सम्यकदर्शनादि को प्राप्ति होकर पूर्ण सुखीपना के प्रार होवे, इसका उपाय छहढाला की दूसरी ढाल में क्या बताया है ?

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