Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 291
________________ ( 295 ) जन्म-मरण सुख-दुख तथा रोग और दारिद्रय इत्यादि जैसे सर्वज्ञदेव ने जाने हैं उसी प्रकार वे सब नियम से होगे। सर्वज्ञदेव ने जिस प्रकार जाना है उसी प्रकार उस जीव के उसी देश मे उसी काल मे और उसी विधि से नियम पूर्वक सब होता है। उसके निवारण करने के लिये इन्द्र या जिनेन्द्र तीर्थकर देव कोई भी समर्थ नही है / प्रश्न ४२-इन दो गाथाओ के भावार्थ में क्या बताया है ? उत्तर-भावार्थ :-सर्वज्ञदेव समस्त द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अवस्थाओ को जानते है / सर्वज्ञ के ज्ञान मे जो कुछ प्रतिभासित हुआ है वह सब निश्चय से होता है, उसमे हीनाधिक कुछ भी नहीं होता। इस प्रकार सम्यग्दृष्टि विचार करता है। प्रश्न ४३-इन दो गाथाओं और भावार्थ से क्या सिद्ध हुआ ? उत्तर-सम्यग्दृष्टि की धर्मानुप्रेक्षा कैसी होती है और सम्यग्दृष्टि जीव वस्तु के स्वरूप का किस प्रकार चिंतन करता है यह बात यहाँ बताई है। सम्यग्दृष्टि की यह भावना झूठा आश्वासन देने के लिये नही है, किन्तु जिनेन्द्र देव के द्वारा देखा गया वस्तु स्वरूप जिस प्रकार है उसी प्रकार स्वय चिंतन करता है / वस्तु स्वरूप ऐसा ही है, यह कोई कल्पना नहीं है, यह धर्म की बात है। 'जिस काल मे जो होने वाली अवस्था सर्वज्ञ भगवान ने देखी है उस काल मे वही अवस्था होती है, दूसरी नही होती।' इस निर्णय मे एकान्तवाद या नियतवाद नहीं है, किन्तु सर्वज्ञ की प्रतीति पूर्वक सच्चा अनेकान्तवाद और ज्ञानस्वभाव की भावना तथा ज्ञान का अनन्त पुरुषार्थ निहित है। प्रश्न 44- सामान्य विशेष वस्तु का स्वभाव है इस पर से क्या सिद्ध होता है ? उत्तर-आत्मा सामान्य-विशेष स्वरूप वस्तु है, वह अनादिअनन्त ज्ञानस्वरूप है। द्रव्य सामान्य और समय-समय पर जो पर्याय होती है वह विशेष है। सामान्यरूप मे ध्र व रहकर वस्तु का विशेषरूप परिणमन होता है, उस विशेष पर्याय मे यदि स्वरूप की रुचि करे तो

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