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योग्य है । मसार का मूल मिथ्यात्व हे मिथ्यात्व के समान अन्य पाप नही है । मिथ्यात्व का अभाव होने पर शीघ्र ही मोक्ष पद को प्राप्त करता है । इसलिए जिस तिस प्रकार से सर्व प्रकार से मिथ्यात्व का नाश करना योग्य है | (मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २६७ )
(ऐ) मोक्षमार्ग मे पहला उपाय आगम ज्ञान कहा है, आगम ज्ञान विना धर्म का साधन नही हो सकता, इसलिए तुम्हें भी यथार्थ बुद्धि द्वारा आगम का अभ्यास करना । तुम्हारा परम कल्याण होगा । (मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ३०५ )
(ओ) हे भव्य । इतना ही सत्य कल्याण ( आत्मा ) है जितना यह ज्ञान है ऐसा निश्चय करके ज्ञानमात्र से ही, सदा ही रति प्राप्त कर इससे तुझे वचन अगोचर ऐसा सुख प्राप्त होगा और उस सुख को उसी क्षण तू ही स्वयमेव देखेगा । दूसरो से पूछना नही पडेगा ! ( समयसार गा० २०६ )
१६. प्रत्येक जीव आत्मा भिन्न-भिन्न हैं
(अ) प्रत्येक जीव आत्मा को भिन्न भिन्न मानता है सो यह तो सत्य है । परन्तु मुक्त होने के पश्चात् भी भिन्न ही मानना योग्य है । (मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ १२८ )
( आ ) इस लोक मे जो जीवादि पदार्थ हैं वे न्यारे-न्यारे अनादिनिधन हैं, तथा उनकी अवस्था का परिवर्तन होता रहता है, उस अपेक्षा से उत्पन्न- विनष्ट कहे जाते हैं । (मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ११० )
(इ) एक जीव द्रव्य, उसके अनन्त गुण, अनन्त पर्याये एक-एक गुग के असख्यात् प्रदेश, एक-एक प्रदेश मे अनन्त कर्मवर्गणाये, एकएक कर्म वर्गणा मे अनन्त अनन्त पुद्गल परमाणु, एक-एक पुद्गल परमाणु अनन्त - गुण अनन्त पर्याय सहित विराजमान हैं। यह एक ससार अवस्थित जीव पिण्ड की अवस्था । इसी प्रकार अनन्त जीव द्रव्य ससार अवस्था मे सपिण्ड रूप जानना ( और मोक्ष मे प्रत्येक जीव