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( १०१ ) (१४) जीव के स्वभावभूत चारित्र के एक देशरूप ५-६-७वे गुणस्थान मे आविर्भाव पाया जाता है। (फिर ८वे तथा १२वे गुणस्थान वालो को बात कहाँ रही) [धवल पु० ५ पृ० २३३]
(१५) सम्यक्त्व-तत्वार्थ के श्रद्धान का नाम सम्यग्दर्शन है। ___ अथवा तत्वो मे रुचि होना ही सम्यक्त्व है। [धवल पु०७ पृ०७]
(१६) अध्यात्मिक भाव-माक्ष को उत्पन्न करने वाले अध्यात्मिक भाव है।
[धवल पु० ७ पृ० ६] (१७) सम्यग्दर्शन सब का समान है-चौथे से तेरहवे गुणस्थान तक के आस्रव सहित और चौदहः गुणस्थानवर्ती आस्रव रहित ऐसे दोनो प्रकार के जीवो मे (सम्यग्दर्शन सब को समान ४ से १४ तक) सम्यग्दर्शन पाया जाता है अर्थात् होता है।
(धवल पु० ७ पृ० २३ मोक्षमार्गप्रकाशक पृ० ३२४) (१८) सम्यग्दृष्टि का ज्ञान स्व-पर विवेक वाला है । मति अज्ञान मे स्वपर के विवेकरूप अभावरूप सफलता होती है । (द्रष्टान्त-खम्भा आदि अज्ञान है क्योकि श्रद्धा सच्ची नही है।
(धवल पु० ७ पृ० ८५-८६) मिथ्यादष्टि का ज्ञान अज्ञान है वह ज्ञान अपना कार्य करता नही ।
(धवल पु० ५ पृ० २२४) (१६) ज्ञान का कार्य-जाने हुए पदार्थों की श्रद्धा करना वह ज्ञान का कार्य है।
(धवल पु० ५ पृ० २२४) (२०) अज्ञानी की दया-दया-धर्म के ज्ञाताओ मे भी आप्त आगम और पदार्थ के श्रद्धान से रहित जीव के यथार्थ श्रद्धान होने मे विरोध है।
(धवल पु० ५ पृ०२२४) (२१) सम्यक्त्व प्राप्त होने पर सन्मार्ग (मोक्षमार्ग) जीव ने ग्रहण किया है। एक विभग ज्ञानी देव या नारकी जीव ने सन्मार्ग (मोक्षमार्ग) पाकर सम्यक्त्व ग्रहण किया। (फिर निश्चय सम्यक्त्व