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( १५६ ) गुणस्थान मे तीन चौकडी कषाय के अभावरूप सकल चारित्ररूप, शुद्ध परिणति, निश्चय मुनिपना-यथार्थ का नाम निश्चय है। २८ मूलगुण आदि पालने का भाव, वन्धरूप होने पर भी मुनिपने का आरोप करना-उपचार का नाम व्यवहार है।
प्रश्न १६-शुद्धि और अशुद्धि मे निश्चय-व्यवहार क्यो बतलाया है ?
उत्तर-मोक्ष नही हुआ है मोक्षमार्ग हुआ है । मोक्षमार्ग की शुरूआत होने पर चारित्रगुण की पर्याय मे शुद्धि-अशुद्धिरूप दो अश हो जाते है । उसमे शुद्धि अश वीतराग है वह सवर (मोक्षमार्ग) है और जो अशुद्धि अश सराग है वह बन्ध है । इसलिए शुद्धि अश को निश्चय और अशुद्धि अश को व्यवहार बतलाया है ।
[मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २८८] नप्रश् २०-उभयाभासी किसे कहते हैं ?
उत्तर-निश्चयाभासी के समान निश्चय को मानता है और व्यवहाराभासी के समान व्यवहार को मानता है-उसे उभयावासी कहते हैं।
प्रश्न २१-उभयाभासी को मान्यतायें क्या-क्या हैं ?
उत्तर-(१) वास्तव मे वीतराग भाव एक ही मोक्षमार्ग है, परन्तु उभयाभासी दो मोक्षमार्ग मानता है। (२) निश्चय मोक्षमार्ग प्रगट करने याग्य उपादेय है और व्यवहार हेय है, परन्तु उभयाभासी दोनो को उपादेय मानता है । (३) निश्चय के आश्रय से धर्म होता है और व्यवहार के आश्रय से वध होता है परन्तु उभयाभासी कहता है कि हम श्रद्धान तो निश्चय का रखते हैं और प्रवृत्ति व्यवहाररूप रखते हैं। • आदि उल्टी मान्यताये उभयाभासी में पाई जाती हैं।
प्रश्न २२-निश्चयाभासो किसे कहते हैं ?
उत्तर-भगवान ने जो बात शक्तिरूप बतलाई है, उसे प्रगट पर्याय मे मान लेना और भगवान ने शुभ भावो को बन्ध का कारण