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परन्तु उनके साथ एकत्व करता है, इसलिए सम्यक्त्व की प्राप्ति नही होती ।
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(आ) एवमयं कर्मकृतैर्भावैर समाहितोऽपि युक्त एव । प्रतिभाति बालिशानां प्रतिभासः स खलु भववीजं ॥ १४ ॥ अन्वयः - एव अय कर्मकृतै असमाहित अपि बालिशाना युक्तः प्रतिभाति । स प्रतिभास खलु भव बीज ( अस्ति ) |
अर्थ - इस प्रकार यह आत्मा कर्मकृत भावो से ( कर्म का उदय है निमित्त जिनमे ऐसे दया, दान पूजा यात्रा आदि विभाव भावो से ) सयुक्त न होने पर भी ( स्वभाव और विभाव का तादात्म्य न होने पर भी, एक द्रव्य न वन जाने पर भी, पारिणामिक और विभाव भाव एक न होने पर भी ) सयुक्त सरीखा ( एक द्रव्य सरीखा ) प्रतिभासित होना ही निश्चय करके ससार का बीज है । अर्थात् ध्रुव स्वभाव और क्षणिक विभाव की इस एकता की मान्यता को ही मिथ्यात्व कहते है, यह 'मिथ्यात्व का पक्का लक्षण है । [पुरुषार्थसिद्धि उपाय गाथा १४ ] (इ) जिन्हे सयोग सिद्ध सवध है ऐसे आत्मा और क्रोधादि आस्रवो मे भेद ज्ञान ना होने से ही सम्यक्त्व प्राप्त नही होता है ।
[ समयसार गाथा ६९-७० टीका ] से सम्यक्त्व नही होता । [ मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ४६ ] प्रयोजनभूत है इनका उल्टा श्रद्धान [छहढाला दूसरी ढाल ]
(इ) स्व-पर का विवेक न होने
( उ ) जीवादि सात तत्व जो होने से सम्यक्त्व नही होता है ।
(ऊ) अपनी आत्मा को छोडकर अनन्त आत्मा, अनतानन्त पुद्गल, धर्म-अधर्म - आकाश एक-एक, लोक प्रमाण असख्यात काल- द्रव्य तथा शुभाशुभ भावो के साथ एकत्व बुद्धि, एकत्व का ज्ञान, एकत्व का आचरण होने से सम्यक्त्व की प्राप्ति नही होती है ।
२१. वस्तु का परिणमन बाह्य कारणो से निरपेक्ष है ( अ ) मिथ्यादृष्टि शास्त्रो का अभ्यासी कहता है कि कर्म के उदय