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( ७७ ) है। इसलिए कषायो के प्रयोजन को साधव दुख दूर करके सुखी होना चाहता है, सो यह उपाय झूठा ही है । तो सच्चा उपाय क्या है ? सम्यग्दर्शन ज्ञान से यथावत् श्रद्धान और जानना हो तव इष्ट-अनिष्ट बुद्धि मिटे । तब कषाय जन्य पीडा दूर हो, निराकुल होने से महासुखी हो। इसलिए सम्यग्दर्शनादिक ही यह दुख मेटने का सच्चा उपाय है ।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ५७) (औ) व्यवहार धर्म कार्यों मे प्रवर्ते तब अवसर तो चला जावेगा और ससार मे ही भ्रमण करेगा। (मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ३१३)
(अ) कितने ही धर्म बुद्धि से धर्म साधते है, परन्तु निश्चय धर्म को नहीं जानते इसलिए अभूतार्थ धर्म को ही साधते हैं।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २२१) १२. बाह्य सामग्री से सुख-दुख मानना यह भ्रम है (अ) बाह्य सामग्री से सुख-दुख मानते हैं सो ही भ्रम है।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ५६) (आ) आकुलता घटना-वढना भी बाह्य सामग्री के अनुसार नहीं। कपाय भावो के घटने-वढने के अनुसार है।xx
(इ) आकुलता का घटना-बढना रागादिक कषाय घटने-बढने के अनुसार है तथा पर द्रव्य रूप सामग्री के अनुसार सुख-दुख नहीं है। (ई) ४वाह्य सामग्री से किचित् सुख-दुख नही है x
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ३०६) (उ) सुखी-दुखी होना इच्छा के अनुसार जानना, बाह्य कारण के आधीन नही।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ७१) (अ) पदार्थ अनिष्ट-इष्ट भासित होने से क्रोधादिक होते हैं, जव तत्वज्ञान के अभ्यास से कोई इष्ट-अनिष्ट भासित न हो, तब स्वयमेन ही क्रोधादिक उत्पन्न नही होते, तव सच्चा धर्म होता है।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २२६)