Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 11
________________ (५) करते हैं तथा मिथ्यात्व की पुष्टि करके चारो गतियो मे घूमते हुए निगोद चले जाते हैं। प्रश्न ६-प्रथम किन-किन पाच बातो का निर्णय करके शास्त्राभ्यास करे तो कल्याण का अवकाश है ? उत्तर-(१) व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध एक द्रव्य का उसकी पर्याय मे ही होता है, दो द्रव्यो मे व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध कभी भी नहीं होता हैं। (२) अज्ञानी का व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध शुभाशुभ विकारीभावो के साथ कहो तो कहो, परन्तु पर द्रव्यो के साथ तथा द्रव्यकर्मों के साथ तो व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध किसी भी अपेक्षा नहीं है। (३) ज्ञानी का शुद्ध भावो के साथ व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध है। (४) मैं आत्मा व्यापक और शुद्धभाव मेरा व्याप्य है। ऐसे विकल्पो मे भी रहेगा तो धर्म की प्राप्ति नही होगी। (५) मैं अनादिअनन्त ज्ञायक एकरूप भगवान हूँ और मेरी पर्याय मे मेरी मूर्खता के कारण एक-एक समय का बहिरात्मपना चला आ रहा है ऐसा जाने-माने तो तुरन्त बहिरात्मपने का अभाव होकर अन्तरात्मा बन जाता है। इन पाँच बातो का निर्णय करके शास्त्राभ्यास करे तो कल्याण का अवकाश है । प्रश्न ७-आगम के प्रत्येक वाक्य का मर्म जानने के लिए क्याक्या जानकर स्वाध्याय करें? उत्तर-चारो अनुयोगो के प्रत्येक वाक्य मे (१) शब्दार्थ, (२) नयार्थ, (३ मतार्थ, (४) आगमार्थ और (५) भावार्थ निकालकर स्वाध्याय करने से जैनधर्म के रहस्य का मर्मी बन जाता है । प्रश्न ८-शब्दार्थ क्या है ? उत्तर-प्रकरण अनुसार वाक्य या शब्द का योग्य अर्थ समझना शब्दार्थ है। प्रश्न ६-नयार्थ क्या है ? उत्तर-किस नयका वाक्य है ? उसमे भेद-निमित्तादि का उपचार बताने वाले व्यवहारनय का कथन है या वस्तुस्वरूप बतलाने वाले

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